शौच धर्म को तो कषायों की अपेक्षा पहले मनाते है पर सत्य धर्म को पहले बनाने के पीछे क्या अपेक्षा है
I believe there is no specific reason for it as such.
It’s just that Acharya KundaKunda has kept satya dharma before shauch dharma and others like Acharya Umaswami have kept shauch dharma above satya dharma.
जब कषायों के अभाव से देखते है तो शौच पहले आता है
जब धर्मों की अपेक्षा से देखते हैं तब स्तय पहले आता है।, क्योंकि सत्य धर्म में शाश्वत सत त्रिकाली ध्रुव आत्म तत्त्व में स्थिर होने की बात है। जब शाश्वत सत में पूर्ण रूप से स्थिर होंगे तभी अंत में लोभ कषाय का अभाव होता है, अतः धर्मों की अपेक्षा से सत्य पहले शौच बाद में आता ह।
इस अपेक्षा से तो सब से बाद मे लेना था क्योंकि लोभ का अभाव तो लास्ट मैं होता है
आपका प्रश्न एकदम सही है, परंतु थोड़ा गौर से देखे तो उत्तर उसी में लुप्त है।
शौच को आखरी में ही रखा है।
कैसे???
प्रारम्भ के 5 धर्म स्वभाव की अपेक्षा, फिर 3 धर्म उपाय स्वरूप और आखरी के 2 धर्म सारभूत।
स्वभाव की अपेक्षा वाले 5 धर्मो में शौच को आखरी में ही रखा है।