Kya chai (tea) coffe abhakshya he??.
हाँ, चाय नशाकारक अभक्ष्य हैं।
नशाकारक अभक्ष्य:- ऐसे पदार्थ जो कि नशा उत्पन्न करते हैं जिनके सेवन से हित , अहित का ध्यान नहीं रहता और सूक्ष्म जीवों का अधिक घात होता है उसे नशाकारक अभक्ष्य कहते हैं।
चाय में कैफीन (नशीला पदार्थ) की मात्रा ज्यादा पाई जाती है और यह बार-बार पीने की आदत लगाती है, और यह नशाकारक भी है अतः यह पीने योग्य नहीं है। क्योंकि यह नशाकारक अभक्ष्य में आती है। इसी श्रेणी में कॉफी, बीयर, शराब आदि आती हैं। पीना ही है तो चाय का विकल्प/ काढ़ा/उकाली जो कि औषधियों से तैयार होता है स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है उसका सेवन अच्छा विकल्प है।
जिनको चाय पसंद है , उनके लिए अर्जुन छाल एक बहुत अच्छा उपाय है । मेने प्रयोग नही की है , but राजीव दीक्षित जी के अनुसार उसका उपयोग बहुत लाभदायक होता है। उसमें दूध डालकर , मिश्री (खांड) डाल कर , बनाया जा सकता है।
@JainTanmay जी
क्या चाय/कॉफी से ऐसा नशा होता है जिससे हित अहित का भान न रहे !?
बेशक इसकी लत लग जाती है इसलिए इसका त्याग करना चाहिए।
आप स्वयं कह रहे हैं कि बेशक लत लग जाती है। गंभीरता से विचार करें तो लत किसी चीज के नशे के कारण ही संभव है ।
होश व विवेक वाली बात दूसरी है ऐसा कुछ हो भी सकता है इसका विश्वास के साथ कहना नहीं बनता किंतु अभक्ष्य के प्रकरण में चाय को नशाकारक में लिया जाता है। ऐसा मुझे भान है।
हिताहित की बात भी जान पड़ती है अगर चाय के लती व्यक्ति को एक टाइम चाय न मिले तो तिलमिला उठता है और बेचैनी होने लगती है।
अंग्रेज जब भारत 1750 में आये तब उन्होंने सर्वप्रथम चाय का उत्पादन शुरू किया था उससे पहले भारत में चाय उत्पन्न नहीं होती थी। east india कंपनी से चाय की शुरुआत हुई थी। उन लोगों का bp कम रहता था इसीलिए वे पीते थे। normal और ज्यादा bp वालों के लिए चाय धीमा जहर जैसा काम करती है।
आयुर्वेद चाय को मना करता है; क्योंकि चाय पीने से acidity/गैस होती है acidity कई रोगों की जड़ है।उसको पीने से विटामिन आदि कुछ नहीं मिलता। सबसे उत्तम हमें गाय का दूध पीना चाहिए यह सम्पूर्ण आहार जैसा काम करता है।
आज हम जो चाय पीते हैं उसमें manufacturing procees में पत्ती को भठ्ठी में डालते हैं उसमें पत्ती के साथ छोटे-छोटे जीव भी आ जाते हैं। त्रस घात का भी दोष लगता है और भठ्ठी रात-दिन चलती है तो रात्रि भोजन त्याग वाला चाय नहीं पी सकता है।
चाय की जो भूसी बचती है उसको गटर आदि में डाल देते है उसमें जीवों का घात होता है।
जिस जीव को ऐसा श्रद्धा में हो कि चाय पीने के बाद ही में swaddhyay कर सकता हूं उनको सम्यक्त्व होना और आत्मसन्मुख होना शुद्धोपयोग होना कठिन है।
तो क्या चाय की पत्ती को भूना या उबाला जाता है??
आपने जो उपरोक्त जानकारी दीं वह रोचक एवं बढ़िया हैं।
बागभट्टाचार्य आयुर्वेद में चाय को भारत के योग्य नहीं मानते क्योंकि चाय की तासीर गर्म है व वह ठंडे प्रदेशों के लिए है। इस संबंध में राजीव दीक्षित जी भी काफी कुछ कहते हैं। जिज्ञासु लोगों को उनके यूट्यूब चैनल पर यह जानकारी मिल जाऐंगी।
चायपत्ती को वे dryery में रखते है।जिससे वे सूखा हो जाये और लंबे समय तक बना रहे।