ऐसी स्थिति में अभक्ष्य सेवन करें या न करें

झूठन न छोड़ने का नियम हो और अज्ञानतावश अभक्ष्य पदार्थ उस थाली में परस जाए तो क्या झूठन न छोड़ने के नियमवश उस झूठन को खत्म करना होगा या उसे छोड़ा जा सकता है? आगमप्रमाण भी दें

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प्रमाण तो मिलना शयाद कठिन हो, लेकिन एक तर्क रख सकता हु
आप भोजन कर रहे हो और कोई कीटक थाली में आकर भोजन में मिल जाये तो उस कीटक को निकालकर आप बाकी भोजन ग्रहण करेंगे ?

मुझे लगता है कि आप पूरा भोजन त्याग कर देंगे,
इसी प्रकार से किसी भी अभक्ष्य भोजन का गलती से सेवन हो रहा हो तो ध्यान में आने पर सेवन छोड़ देना ही योग्य है। झूठन छोड़ने के दोष से मुझे ज्ञान है तब तक अभक्ष्य के भक्षण का दोष बहोत ज्यादा है।

श्रावक को सप्तव्यसन और अभक्ष्य का त्याग करने को कहा गया है।
भोजन जूठा न छोड़े वह इच्छनीय और करने योग्य ही है,
लेकिन इस परिस्थितिमे भोजन छोड़ देने में दोष नही।
(ये उत्तर तर्क के आधार पर है)

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@Vishal_Doshi ji has provided a very good answer.

I’ll also like to share my view though not directly answering the question.
इस प्रकार के अधिकतर cases में तात्कालिक विवेक से ही कार्य होगा (and that will differ from case to case)। ये बात जरूर है कि हमारा विवेक आगम आधारित ही होना चाहिए।

प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका अलग अलग है, नियम आदि के पालन में भी भिन्नता है, अतः जीवन के ऐसे प्रसंगों में अहिंसा, अप्रमाद और विवेक को ध्यान में रखकर निर्णय लेना योग्य है।

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बहुत सुंदर प्रश्न है तन्मय

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Nicely explained by @Vishal_Doshi and @Sulabh.

Just extending… भोजन त्याग करने के पश्चात्, we should make sure that the food is not wasted, get it packed and give it to someone who will have no problem in eating it (or maybe animals).

The fact that millions of people around the globe sleep daily by having only a one-time meal should bring some emphatic behavior over food consumption.

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I agree with your answer but a curiosity just struck my mind. In this case, wouldn’t we be held responsible for the sin by कारित and/or अनुमोदना?

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I think it’s an ugly middle situation. First of all, one should try to not get into such kind of situation. If mistakenly got into, अपनी भूमिकानुसार निर्णय करना। Tentatively, मुनिव्रती तथा कुछ अंत की प्रतिमा धरी श्रावक सर्वथा त्याग करके नवीन भोजन ग्रहण नहीं करेंगे। It may differ case by case.

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माफ़ करना पर यहां मे पूज्य गुरुदेव के आधार से कहूंगा अभक्ष्य खाने से अच्छा उसका त्याग करना है। उसे कीसी जरूर मंद व्यक्तिको देने मे कृत कारीत अनुमोदन का फल मिलेगा। जो अभक्ष्य हे वो दान हेतू भी नहीं है।

प्रतिमा धारी श्रावक*

किसी* जरूरत मंद*, में*, कृत, कारित, है*, हेतु*,