निश्चय नय से अभव्य जीव

यद्यभव्यजीवे परमात्मा शक्तिरूपेण वर्त्तते तर्हि कथमभव्यत्वमिति चेत्‌ परमात्मशक्तेः केवलज्ञानादिरूपेण व्यक्तिर्न भविष्यतीत्यभव्यत्वं, शक्ति: पुन: शुद्धनयेनोभयत्र समाना। यदि पुन: शक्तिरूपेणाप्यभव्यजीवे केवलज्ञानं नास्ति तदा केवलज्ञानावरणं न घटते भव्याभव्यद्वयं पुनरशुद्धनयेनेति भावार्थः। एवं यथा मिथ्यादृष्टिसंज्ञे बहिरात्मनि नयविभागेन दर्शितमात्मत्रयं तथा शेषगुणस्थानेष्वपि। तद्यथा– बहिरात्मावस्थायामन्तरात्मपरमात्मद्वयं शक्तिरूपेण भाविनैगमनयेन व्यक्तिरूपेण च विज्ञेयम्‌ अन्तरात्मावस्थायां तु बहिरात्मा भूतपूर्वन्यायेन घृतघटवत्‌, परमात्मस्वरूपं तु शक्तिरूपेण भाविनैगमनयेन, व्यक्तिरूपेण च। परमात्मावस्थायां पुनरन्तरात्मबहिरात्मद्वंय भूतपूर्वनयेनेति।

प्रश्न– अभव्य जीव में परमात्मा शक्तिरूप से रहता है तो उसमें अभव्यत्व कैसे ?
उत्तर –अभव्य जीव में परमात्मा शक्ति की केवलज्ञान आदि रूप से व्यक्ति न होगी इसलिए उसमें अभव्यत्व है। शुद्ध नय की अपेक्षा परमात्मा की शक्ति तो मिथ्यादृष्टि भव्य और अभव्य इन दोनों में समान है। यदि अभव्य जीव में शक्तिरूप से भी केवलज्ञान न हो तो उसके केवलज्ञानावरण कर्म सिद्ध नहीं हो सकता। सारांश यह है कि भव्य व अभव्य ये दोनों अशुद्ध नय से हैं। इस प्रकार जैसे मिथ्यादृष्टि बहिरात्मा में नय विभाग से तीनों आत्माओं को बतलाया उसी प्रकार शेष तेरह गुणस्थानों में भी घटित करना चाहिए जैसे कि बहिरात्मा की दशा में अन्तरात्मा तथा परमात्मा ये दोनों शक्तिरूप से रहते हैं और भावि नैगमनय से व्यक्तिरूप से भी रहते हैं ऐसा समझना चाहिए। अन्तरात्मा की अवस्था में बहिरात्मा भूतपूर्वन्याय से घृत के घट के समान और परमात्मा का स्वरूप शक्तिरूप से तथा भावि नैगमनय की अपेक्षा व्यक्तिरूप से भी जानना चाहिए। परमात्म अवस्था में अन्तरात्मा तथा बहिरात्मा भूतपूर्व नय की अपेक्षा जानने चाहिए। (स.श./टी./४)।

प्रश्न –अभव्य जीव के मनःपर्ययज्ञानशक्ति और केवलज्ञानशक्ति होती है या नहीं होती। यदि होती है तो उसके अभव्यपना नहीं बनता। यदि नहीं होती है तो उसके उक्त दो आवरण-कर्मों की कल्पना करना व्यर्थ है।
उत्तर –आदेश वचन होने से कोई दोष नहीं है। अभव्य के द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान शक्ति पायी जाती है पर पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा उसके उसका अभाव है। …

प्रश्न –यदि ऐसा है तो भव्याभव्य विकल्प नहीं बन सकता है क्योंकि दोनों के मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान शक्ति पायी जाती है। उत्तर - शक्ति के सद्भाव और असद्भाव की अपेक्षा भव्याभव्य विकल्प नहीं कहा गया है। (अपितु व्‍यक्ति के सद्भाव और असद्भाव की अपेक्षा यह विकल्‍प कहा गया है।)

स्रोत- http://jainkosh.org/wiki/भव्य

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