जन्म दिन मानाना

जन्मदिन मनाना माने संसार को बढ़ावे करने जैसा कार्य है।वास्तव में आत्मा तो आनादी अनंत है ।जन्म तो शरीर का हुआ है जीव प्राप्त पर्याय में तन्मय होने जैसा काम है। हमारे आचार्यो ने तो पूरे ग्रंथ में नाम भी मुश्किल से लिखा होगा ,तो जन्म तारीख आदि परिचय की तो बात बहुत दुर की है।

वास्तव जिनका भव अंतिम हो चरम शरीरी हो उनका ही मनाया जाता है। मेरा भी इस संसार में अंतिम भव आये इस भाव से मनाया जाता है।

परंतु आजकल विद्वानों का सामूहिक रूप से जन्मदिन मनाया जाता है यह कहाँ तक उचित है?

विद्वान की महिमा उनके ज्ञान और कथन शैली से आती है परंतु जन्मदिन मनाने से मोक्षमार्ग में क्या लाभ मिलेगा?

कृपया समाधान करे।

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विद्वान कोई भी हो जन्म दिवस को महोत्सव के रूप में बनाना गलत ही है, जिनवाणी मां ने जन्म मरण को संसार में सबसे बड़ा दुख का कारण बताया है,
हम पूजन के अष्टक में सबसे पहले जन्म मरण के अंत की बात करते है। ऐसे में जन्म दिवस को उत्सव के रूप में बनाना खुद ही अपनी जिनवाणी मां की बातो का अनादर करना है, आपने ये सही कहा है,

वास्तव जिनका भव अंतिम हो चरम शरीरी हो उनका ही मनाया जाता है। मेरा भी इस संसार में अंतिम भव आये इस भाव से मनाया जाता है।

यही सही है,

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