तीर्थंकर को क्षायिक समकित केवली के पादमूल में ही होगा या उनके निमित के बिना भी हो सकता है ?
उनके पादमूल में ही होता है।
जो तीर्थंकर का जीव( 2- 3 कल्याणक वाले) जो क्षयोप्शमिक स्मयक्तद्रष्टि अथवा मिथ्यात्व में है वे स्वयं मुनि बनकर बादमे श्रुततकेवली हो कर स्वयं के पादमूल में अधः करण आदि तीन करण और दर्शन मोह की क्षपणा करके क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त कर सकते है।
परंतु यह मात्र विदेह क्षेत्र में ही होता है।
भरत और ऐरावत क्ष्रेत्र में पूर्व भवसे क्षायिक सम्यक्त्व लेकर आते है।
ये भरत क्षेत्र में भी हो सकता है श्रीकृष्ण जब नरक से आयेगें तो वो यहाँ आकर स्वयं ही क्षायिक सम्यक त्व लेंगें
अभी वर्तमान में दूसरे तीसरे नरक के असंख्यात नारकी तीर्थंकर प्रकृति का बंध कर रहे है। परंतु उन्हें अभी क्षायिक सम्यग्दर्शन नही है, क्योंकि वह दूसरे तीसरे आदि नरको मे नही होता, अभी क्षायोपशमिक है।
जब वे मनुष्य पर्याय में आएंगे तो नियम से मोक्ष जाएगे अतः क्षायिक सम्यक दर्शन तो करना ही होगा, ऐसी स्थिति में तीर्थंकर को क्षायिक सम्यग्दर्शन केवली के पादमूल के निमित के बिना भी होता है।
#निसर्गजक्षायिकसम्यग्दर्शन
हां