पंचम काल में मुनिराज जंगल क्यों नहीं जा सकते?

किन शास्त्रों में ऐसा वर्णन है कि जैन मुनि को पंचम काल में जंगल में विहार नहीं करना चाहिए ? क्या यह किसी समय की परिस्थिति थी कि जब संप्रदायिक आग फैली हुई थी तब किन्ही आचार्य ने जंगल जाने का निषेध किया या फिर पंचम काल के लिए भगवान महावीर स्वामी ने जंगल में विहार या ध्यान करने से स्पष्ट मना किया था ?
मेरा प्रश्न यह है की अगर कोई मुनिराज आज के समय जंगल में साधना करें तो क्या यह आगम विरुद्ध हो जाएगा अथवा नहीं ?

क्योंकि अगर हम जानवरों के डर से जंगल में जाने का निषेध करें तो फिर यह तो हमारा कर्म व्यवस्था से ही विश्वास उठ गया । अगर कर्म फल पर ही विश्वास नहीं तो फिर निर्जरा का क्या फायदा ? जैन मुनि तो सिंह वृत्ति का होता है उसे किस चीज का डर ?

क्या ऐसा होता है कि अगर हम जंगल ना जाए तो जो हमारा कर्म जंगल में उदय में आता और शेर हमको हानि पहुंचाता उस कर्म को हम जंगल ना जाकर, शहर में ही तपस्या करके नष्ट कर दें ?

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आप इतने अटल विश्वास से कैसे कह सकते हो?
क्या आपने ऐसा पढ़ा ? किस ग्रंथ में ऐसा पढ़ा उस ग्रंथ का नाम बताएं…

यह बहुत ही चिंतन का विषय है। अगर हम आगम की बात करे तो दोनों तरह के कथन आते है। इंद्रानंदी श्रावकाचार
में मुनिराजों के वन में जाने का निषेध किया है। लेकिन उस समय की परिस्थिति कुछ अलग थी। 10 वी सदी के पूर्व के
सभी मुनिराज जंगल मे ही रहते थे। इसका आचार्य भगवंत गुणभद्र ने आत्मानुशाशन ग्रंथ में भी उल्लेख किया है की इस कलिकाल में मुनिराज भयभीत होकर वन से ग्राम के समीप आ रहे हैं। वह चिंता का कारण है। मुनिराज सिंहव्रती वाले होते है। अगर हम दूसरे आचार्य की भी बात करे तो उनहोने भी ग्राम के समीप रहने का आदेश दिया है, या जिनालयों में रहने का आदेश दिया है। लेकिन श्रावको के घरों में रहना , नए बने मकानों में रहना यह बिल्कुल शिथिलाचार है। आजकल तो साधु भवन भी बनाये जाते तो अगम अनुकूल नही है।
मुनिराज कभी बंद कमरों में नही रह सकते।
और श्रावको के साथ रहना, सभी में राग की उत्पत्ति होती। मुनिराज श्रावको की संगति करेंगे तो उनका मुनिपना भी नही रहेगा। यही हम उपरोक्त दोनो ग्रंथो का आधार मानकर देखें तो मुनिराज वनों में रहे तो उत्कृष्ट हैं। अन्यथा ग्राम या जिनमंदिर में रहे, जहा उनकी तप साधना में कोई विघ्न ना हो और राग की उत्पत्ति ना हो। लेकिन नगरो मे और मकानों में रहना बिल्कुल आगम विपरीत और शिथिलाचार को बढ़ाने वाले है। मुनिराज कभी गृहस्थों की संगति नही करते आहार की क्रिया के अलावा। निष्कर्ष में कहे तो मुनियों का जंगल मे और ग्रामो में रहने का कोई दोष नही है। हम
यह नही कह सकते की मुनिराज जंगल मे ही रहते। और यह भी नही कह सकते की पंचम काल मे मुनि जंगल में नही रहते यदि ऐसा है तो कुन्दकुन्द , समन्तभद्र , गुणभद्र जैसे महामुनियों पर आरोप लगाएंगे।

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समाधि तंत्र आचार्य पूज्यपाद

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