विचार तो करें कि यह जिनवाणी कितने पुण्योदय से हमें प्राप्त हुई है

अगर धरसेनाचार्य स्वामी को यह(दो बैलों का स्वप्न) स्वप्न ही न आया होता तो क्या होता?? आचार्य भूतबलि स्वामी जी , आचार्य पुष्पदंत स्वामी जी नहीं मिलते तो, सही जगह सूचना नहीं पहुंचती तो क्या होता??

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पंचम काल पहली बार नहीं आया है। असंख्यात बार पहले आ चुका है और आगे भी आएगा। यह तो सृष्टि का क्रम है, इसमें हेरफेर संभव नहीं । रही बात शास्त्र लिखने की तो आज जो हमको शास्त्र उपलब्ध हैं वह हमारे उपादान एवं पुण्य से हैं।

आचार्य पुष्पदंत भूतबली ने शास्त्र लिखकर हमारा बहुत उपकार किया लेकिन वास्तव में देखा जाए तो शास्त्र तो हर अवसर्पणी कालचक्र के पंचम काल में उपलब्ध होते हैं । किसी ना किसी के निमित्त से 21000 साल के लिए शास्त्र उपलब्ध होते हैं।

अगर हम यह सोचे कि अगर वह शास्त्र ना लिखे होते तो हमारा क्या होता, इसी तरह अगर हम सोचे कि 14 कुलकर ना हुए होते तो हमारा क्या होता, असी, मसी, कृषि - कर्मभूमि के साधन न उपलब्ध होते तो, राजा श्रेयांश को सपना न आता तो, रावण जब सुमेरु पर्वत हिला रहा था तब महाराज बालि ने उसको ना रोका होता तो, औरंगजेब ने सारे शास्त्र जला दिए होते तो, इत्यादि।

मुझे तो यह भी लगता है की औरंगजेब का मंदिर तोड़ना और शास्त्र जलाना , वह केवल निमित्त मात्र था वास्तव में हम सब का उपादान ही नहीं था और अंतराय कर्म का उदय था कि हमको वह शास्त्र नहीं मिले।

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आपकी बातों से सहमत हूं। अच्छा समाधान किया। सब अपने ही पुण्य-पाप की लीला है। मैंने भी यही विचार किया था जो आपने लिखा है। धन्यवाद!!

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