Q2. जब किसी के साथ बुरा होता है अर्थात पाप उदय आता है, तो हम कर्म सिद्दांथ की ओर देखते हैं ऐसे में दो स्थिति बनती हैं पहली स्थिति यह की समता भाव की जगह हममें द्वेष आ जाता है कि उसने पूर्व जन्म में ऐसा ही किया होगा और इसलिए उसके साथ जो हो रहा है सही हो रहा है, और दूसरी स्थिति अगर हम मदद करे तो क्या हम कर्म सिद्धांत या जिसके साथ उसने पूर्व भव में बुरा किया है उसके साथ क्या हम अन्याय नहीं कर रहे हैं ? तो ऐसी स्थिति में अपने gunsthan अनुरूप हमे क्या करना चाहिए ? कृपया अपने answer ko उदहारण और तर्क सहित स्पष्ट कीजिए।
When we envisage Karan Siddanth in any another human being or animals generally in the situation of their bad period, we find that person is getting what he/she done in the past, and it develop feeling of “uske saath yahi hona chaiya aur jo ho raha hai sahi hai” certainly rather bringing neutrality, it bring feeling of sort of dwesh. If we not envisage karm Siddanth then is it we are doing unfavor to that person on whom he had done the bad deeds? So, what should we do according to aur status (grastha mithyadrashti or samyagdrashti) ?
Samyagdarshan ke aath angon me 1 ang aata hai sthitikaran ang. Is ang ke according jo bhi anya sadharmi jan hai unka paap uday aaye aur wo dharm se vichlit ho toh unhe sthit karna hai. Isme se hum ye bhi grahan kar sakte hai ki us jeev ki karuna purvak hum madad karein.
Vyavahar dharm ko dekhe toh us jeev ki madad karna humara kartavya hai.
यदि ऐसी परिस्थिति मुनिराज के साथ हो तो वे मदद नही करेंगे। लेकिन यदि संघ में ही किसी अन्य मुनि के साथ हो तो करेंगे।
श्रावक का कर्तव्य है जीव दया।
अब इससे क्या फर्क पड़ता है कि उसने पिछले भव में क्या किया। उसके कर्म वो भोगे।
हमारा काम तो मदद करना है सो हमें तो बिना संकोच के करना ही चाहिए। इसमे भी अपनी चतुराई का प्रयोग करना(वर्तमान परिस्थियों के कारण)।
यदि हमें ऐसा विचार आ जाये कि उसके साथ जो हो रहा है सो सही हो रहा है इसलिए होने दो। तो हम भी उसके पाप की अनुमोदना ही कर रहे हैं। जो कि सही नही है। हमें तो अपनी भूमिकानुसार कार्य करना चाहिए।
Best example:
When sangam dev has done upsarg to mahaveer swami, instead of giving harsh words prabhu mahaveer ki ankho se ansu nikal gaye ki usko kitni pareshaniyo ka samna karna padega.
So, even if his karma are remaining he would not be able to entertain our help. But, we should try to help him.
Best example to understand this concept is : bhimsen charitra.
I insist you to read it once. Your doubts will get clear.
मदद का होना/ मिलना भी उदयानुसार है। उसमें हमारी तो क्या सर्वज्ञ देव की भी नहीं चलती। अतः प्रत्येक प्रसंग के ज्ञाता रहना उत्सर्ग मार्ग है।
अब भूमिकानुसार वात्सल्य हर धर्मी जीव को आता है। परन्तु उस विकल्प की पूर्ति भी कर्माधीन है। और यह पूर्ति भी अकाट्य सिद्धांत कि ‘एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ नहीं कर सकता’ को काटे बिना मात्र निमित्त की ओर से व्यवहार को मुख्य करके कथन मात्र है।
अतः, किसी जीव के पाप का उदय देख कर धर्मी को भी वात्सल्य भाव आता है। वह उसकी पूर्ति का योग्य प्रयास तो करते ही हैं, परंतु कर्मोदय वश यदि विकल्प की पूर्ति नहीं होती, तो खेद खिन्न नहीं होते हुए, वस्तु स्वरूप को स्वीकार करते हैं।
If you could stop the future war (maybe) between North Korea and America, you can save millions of lives but it’s not under your control so उनकी भवितव्य का विचार कर समता धारण करें कि पूर्व जन्म में ऐसा ही किया होगा और इसलिए उसके साथ जो हो रहा है सही हो रहा है। व्यर्थ अपने परिणाम न बिगाड़े।
But if you see a wounded half dead dog outside your home then do whatever you can in your power to save its life. It’s termed as अभय दान in Jainism. Recall the story of जीवंधर स्वामी.
तथा ऐसा करने पर उनका कर्मोदय भी पुण्य रूप होगा तो न्याय - अन्याय की बात ही नहीं हैं।
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अतः विवेकानुसार अपने द्रव्य, क्षेत्र, कल भाव तथा समय, शक्ति, बुद्धि, परिणामों का विचार कर जिस परिस्तिथि में जैसा उचित हो वैसा कार्य करें।
Vah karuna rup se.
Isi liye to hum unhe karunanidhan kahte he.
Jaise ki kuchh chije sahaj ho jati he.
Jab prabhu k kan se kante nikale to prabhu ka man to sthir tha lekin sharir abhi 6uta nahi tha is karan muh se chis nikal gai.
He is God or different from us common beings because he doesn’t or didn’t mind the things which we sansari people mind.
And that’s what make him or any God different from us.
So, that is why we never support these claims.
पाप का उदय कर्म की एक अवस्था है यह हमारे द्वारा ही पहले बंधा गया है तो शोक किसका मनाये या दुख किसका मनाये जैसे यदि हम शिखर जी की यात्रा के लिए निकले और खाने केके लिए जो लेकर गए वही खाना पड़ेगा तो फीर उसमे विचार क्या करना चुप चाप खा लो ।ठीक उसी प्रकार पाप के उदय में जो भी अनुकूलता आती है उसको सहज स्वीकार करना चाहिए साथ ही इस बात की खुसी मनाओ की पाप का उदय अभी आ गया निर्जरा हो गई । ज्ञानी वही है जो पाप के उदय काल मे भी सहज रहे ।
ट्रेन में बहुत लोग होते है हम सब से बाते करते है कोई हमारा मित्र भी बन जाता है पर हम वहाँ अपने आप को नही भूलते कोई यदि सामने बैठा हुआ आप को अपना खाना के लिए दे तो नही खाते पता नही कौन होगा कैसे बनाया होगा विचार है उसके स्टॉप पर आप नही उतरते क्यो की अपना सुभाव ख्याल रहता है बेसे ही इस पर्याय संबंधी सभी संयोग जो कर्म के उदय से मिले है वह ज्ञान के विषय तो बने पर सुखी दुखी न हो वही सम्यक्त्व है । वास्तव में देखा जाए तो परद्रव्य दुख का कारण नही है , उसमे दुख पाने की मान्यता दुख का कारण है यदि पर द्रव्य को दुख का कारण कहे तो मिथ्या ही दृस्टि है ।
यदि आप प्रभु शब्द से भगवान महावीर अर्थ ले रहे हैं फिर तो यह गलत है। और न ही भगवान में कोई करुणा या दया नाम के गुण होते हैं। वे निर्दयी होते हैं।
मुनि महावीर ऐसा अर्थ लेते हैं तो भी आंखों में आँसू किसी के प्रति राग भाव को दिखाता है, और किसी के प्रति इतना विचार की आंखों में आंसू ही आ जाएं ये तो मुनि की भूमिका में नही आता।
हा इतना हो सकता है कि उपसर्ग करने के बाद मुनि 6 वे गुणस्थान में आये हों और उसके संबंध में विचार आया हो।( ये सिर्फ मेरी संभावना है ऐसा हुआ ही होगा ऐसा नही है, प्रमाण यदि कही पर मिले तो अवश्य ही बताएं)
भगवान मे दया नाम की कोई चीज़ नही होती, यदि दया आ जाये तो वीतरागता चली जायेगी। जो जिनमत को सम्मत नही है।
Edit:
निर्दय शब्द का अर्थ क्रूरता नही होता, अपितु दया से रहित होता है। सिद्धचक्र महामंडल विधान में सिद्धों के लिए निर्दयाय शब्द लिखा है।ऐसे ही अनेकों प्रयोग होते हैं जैसे कि भगवान असहयोगी हैं,निर्धन हैं इत्यादि।
करुणा भी दया ही रूप है।
अब कहने वाले तो बहुत कुछ कहते हैं जैसे कि मैंने तेरे ही भरोसे महावीर भवंर मे नैया छोड़ दायीं संकटमोचन हारी पारसनाथ दयानिधि, करुनानिधान
लेकिन ऐसा कुछ है नही । ये गुण भगवान में नही पाए जाते। अज्ञानियों ने लिख दिया और हम सभी ने follow कर लिया। जिन ज्ञानियों ने लिखा वो मात्र उपचार और महिमा वाचक कथन था, कुछ और नही।
सारे गुण भगवान में नही हो सकते, उनमे सिर्फ वे ही गुण हो सकते हैं जो जीव द्रव्य में पाए जाते हैं।
Kya prabhu nirday hote he please. Ku6 likhne se pahele uske arth ka vichar kijiye. Aur yeh stavan me praman he. Aur aap kahete he karuna aur daya nahi hote to phir unko karunanidhan or dayanidhi kyu kaha jata he. Aur phir prabhu to sabhi guno k bhandar he.
Btw this is going in wrong direction can we stop this stuff here…