सांसारिक सुख तीव्र कसाय में अधिक है, या मंद कसाय में?

भोगवती : जैसे बहुत भूख लगी हो तो भोजन में स्वाद अधिक आता है, अथवा भोजन अधिक स्वादिस्ट नहीं भी हो तो भी भूख लगने के कारन स्वाद आता है, तो इससे यह पता चलता है की भूख अधिक/ इच्छा अधिक/ कसाय अधिक तो स्वाद भी अधिक, सो सांसारिक सुख भोगने के लिए तीव्र कसाय होना जरूरी है, अन्यथा मंद कसाय में वैसा आनंद नहीं आएगा, मंद कसाय में तो बढ़िया भोग भी नीरस भासते है ।

जिनमती : नहीं बहन, भोगो का सुख भी जैसा मंद कसाय में है, वैसा तीव्र कसाय में नहीं, जैसे भोगभूमि के पुरुष मंद कसाय (एक आंवले जितनी भूख) से भोजन करते है, तब भी उन्हें उत्कृष्ट स्वाद आता है, सो स्वाद लेने के लिए भूख अधिक चाहिए, ऐसा जरूरी नहीं ।

भोगवती : नहीं बहन, जैसे किसी वस्तु की बहुत समय से इच्छा रही हो, उसे प्राप्त करने के लिए बहुत संघर्ष किया हो, जिसके कारन हृदय में संताप रहा हो, ऐसी वस्तु के मिलने पर जो सुख है, वह सहज ही मिल जाने वाली वस्तु में नहीं, सो भोगभूमि में सहेज मिलने वाले स्वादिस्ट भोजन की भोगभूमि के पुरुष कदर ही नहीं जानते, इसलिए जब तक कसाय में तीव्रता न हो तब तक भोगो में आनंद नहीं आता ।

जिनमती : नहीं बहन, जैसे चक्रवर्ती अनेक वर्षो तक देशांतर भ्रमण करके, युद्ध करके, संघर्ष करता हुआ राज्य को प्राप्त करता है और इन्द्र बिना भ्रमण किये, बिना युद्ध किये सहेज ही राज्य को प्राप्त करता है, तो भी इन्द्र जैसा सुख चक्रवर्ती के नहीं, सो सुखी होने के लिए पहले बहुत इच्छा रहे (तीव्र कसाय) या पहले बहुत संघर्ष करना पड़े, ऐसा जरूरी नहीं ।

भोगवती : नहीं बहन, यदि इन्द्र के भी चाह न हो तो राज्यादि से सुख नहीं हो, कांसेप्ट यही है - जितनी अधिक चाह/ कसाय होगी उतना अधिक सुख होगा, इसलिए सांसारिक सुख के लिए चाह होना अनिवार्य है, इसलिए भोगो का आनंद तीव्र कसाय में ही है ।

जिनमती : नहीं बहन, सांसारिक सुख भी उन्हें अधिक होता है जिनके ह्रदय में चाह नहीं है, इसलिए भोगो का भी असली आनंद जब है जब कसाय में मंदता हो ।

इसके बाद भोगवती गुस्सा होकर चली गयी, पर प्रश्न अभी भी यही है - कि आखिर सांसारिक सुख तीव्र कसाय में अधिक है, या मंद कसाय में ? क्योंकि प्राय: चाह जितनी अधिक हो, सुख बुद्धि (राग) भी उतना अधिक होने से इच्छा पूर्ती होने पर सुख भी उतना अधिक होता है, इसलिए भोगवती ने जो कहा वह भी गलत तो नहीं है |

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पश्च्यात दुःख ते सुख नही