हम अपने परिणामों के कर्ता है या नही?

हम अपने परिणामों के कर्ता है या नहीं?

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हम अपने परिणामों के कर्ता तो हैं, लेकिन फेरफार कर्ता नहीं है मतलब हम जो सोच रहे हैं, कर रहे हैं, वह हम ही कर रहे हैं लेकिन वह सब पहले से ही निश्चित है। इसलिए -

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“यः परिणमति सः कर्ता” जो जिस रुप परिणमित होता है ,वह उसका कर्ता होता है। जीव स्वयं
अपने परिणामों से परिणमित होता है,अतः वह अपने परिणामों का कर्ता है।
-जीव अपने परिणामों में फेरफार नहीं कर सकता इसलिए जीव को अपने परिणामों का अकर्ता कहा
जाता है
सरल भाषा में कहें तो जीव अपने परिणामों का कर्ता तो है,परन्तु परिणामों का फेरफार का कर्ता नहीं है।

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जो शुभ या अशुभ या शुद्ध परिणाम हुए, उसका करता मैं हूँ। वह परिणाम एक समय का है। इसलिए उसे बदलना सम्भव नही। बदलने के लिए दूसरा समय चाहिए परन्तु दूसरे समय में वह व्यय होगा और दूसरा परिणाम हो गया।
फिरभी…
अशुद्ध परिणामो की जो अनादि की धारा चल रही है उसका संवर कर शुद्ध परिणति का कर्ता भी मैं हूँ। पूर्व परिणाम में अशुद्धि थी अब उत्तर परिणाम में शुद्ध रूपता है यह बदलाव मेरे पुरुषार्थ का फल है। यह बदलाव का कर्ता भी मैं हूँ।

और मेरे ऐसे पुरुषार्थ और ऐसे किये गये बदलाव को सर्वज्ञ पहेले से जानते है इसलिए यह सब निश्चत है। मेरे पूर्व परिणाम से उत्तर परिणाम के स्वरूप में जो बदलाव मैं ला रहा हूँ उसका ज्ञान सर्वज्ञ को पहेले से है। यहिं क्रम नियमित की सच्ची समझ है।

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आपने कहा शुभ और अशुभ एक समय का परिणाम है तो एक समय इतना छोटा होता है कि उसमें हम कैसे नाप सकते हैं कि यह शुभ था या अशुभ?

ना हम एक एक समय के पर्याय को जानते है ना उसके शुभ अशुभरूपता को। किन्तु एक एक समय की पर्याय वह एक दूजे से दो वस्तुओं की तरह भिन्न थोड़ी है। सभी पर्याय वास्तव में एक प्रवाह का अंश है। इसलिए शुभ या अशुभ भाव एक प्रवाह से चलते है तो असंख्यात समय की स्थूलता से हम उसे जानते है।

यदि आपको पर्याय के स्वरूप की स्पष्टता होगी तो ही आपके प्रश्न का समाधान हो पाएंगे।

यहां 2 वीडियो लिंक दे रही हु। शायद वह आपको कुछ स्पष्टता दे।

जो परिणमें सो कर्ता यह व्यख्या जो समझे उसके लिए यह समझना सरल है कि परिणमन द्रव्य का होने से वह कर्ता और परिणमन से जो अवस्था होती है वह पर्याय कर्म है। और द्रव्य के क्रियात्मक प्रवाह का शुभाशुभ भाव को हम जानते है।

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