अनेकांत का अर्थ

अनेकांत का सही अर्थ क्या है? व लोग इसको विपरीत कैसे ग्रहण करते हैं? कृपया उदहारण देकर समझाएं|

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Ekantvad ka matlab he kisi bhi chij ko ek hi drashtikon se dekhna.
Anekantvad matlab paristhiti k anusar ek hi vastu ko alag alag drashtikon se dekhna.
Jain darshan me iska ek khas mahatva he aur kai jatil prashno ka ukel isse laya jata he.

Ek example iske liye ata he. Ek vyakti Jo dekh nahi sakta usko hathi ko pahechan ne ko bole, vo uske pair ko sparsh kar ke anuman lagayega to kahega pillar he. Punchh ko sparsh karega to bolega rassi he. So, akele ek part se decision lega vo ekantvad he lekin koi pure hathi ko dekh ke pahechan jaega.

Bhavan ne ratribhojan Na kaha tha kyuki tab light nahi thi ab to kha sakte he. Ye shayad iska galat upyog kah sakte he.

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प्रत्येक वस्तु अनेकांतात्मक होती है। जिसमे अनेक धर्म गुण और शक्तियाँ पायी जाती हैं।
अनेकांत शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है अनेक और अंत।
इन दोनों के 2 अर्थ हो सकते हैं।

  1. अनेक- जो एक नही है ऐसा दो।
    2 से भी अधिक।
  2. अंत- धर्म
    गुण
    जब अनेक शब्द का अर्थ 2 होगा तब अंत शब्द का अर्थ धर्म होगा। और जब अनेक शब्द का अर्थ अनेक होगा तब अंत शब्द का अर्थ गुण होगा।
    धर्म- परस्पर विपरीत दिखाई देने वाले युगल। जैसे नित्य अनित्य
    गुण- बिना किसी विरोधी के जी रहें। जैसे ज्ञान दर्शन
    स्याद्वाद इनका कथन करता है। कथन किसका करना है ये वक्ता अथवा ज्ञाता पर निर्भर करता है।
    जिसका कथन करेगा वह मुख्य हो जाएगा और बाकी सभी गौण।
    गौण का अर्थ कथन नही करना है। न कि उसका नाश कर देना।
    ही भी का प्रयोग।
    विवक्षा अविवक्षा का प्रयोग।
    मुख्य गौण का प्रयोग।
    प्रमाण नय का प्रयोग।
    इत्यादि सभी इसके ही अंग हैं।
    लोग अनेकांत को संशयवाद मान लेते हैं। की इनसे कहो कि आप BJP को मानते हैं तो बोलेंगे हाँ। फिर पूछी की कोंग्रेस को मानते हो तो भी बोलेंगे हाँ। इस तरह ये तो बिन पेंदे का लोटा जैसा सिद्धांत है।
    लेकिन उस सभी का कहना गलत है क्योंकि वस्तु को देखने का द्रष्टिकोण सबका अपना अपना अलग होता है। कोई एक ही व्यक्ति हो पापा कहता है और कोई बेटा। कोई उसी को मामा कहता है और कोई फूफा।
    क्या इस सभी का कहना गलत है???
    नहीं। सबका अपना दृष्टिकोण है।
    बस लोग इसे ही समझने तैयार नही हैं। जबकि इसके प्रयोग बिना उस संसार मे 1 मिनिट भी नही रह सकते ।
    कुछ तो पक्ष व्यामोह के कारण विरोध करते हैं और कुछ सिद्धांत को समझे बिना ही विरोध करते हैं। सो उनका वे जाने। अपने को क्या।

बहुत कुछ चर्चा अपेक्षित है।

This message is on behalf of Anubhav Jain.
There is some error when he is posting.

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