पूर्व आचार्यों ने लिखा है कि आगम की वाणी तलवार पर पानी की बूंद के समान कट्टरता से माननी चाहिए अब प्रश्न यह है कि आगम में सारे के सारे उपलब्ध ग्रंथ आएंगे या फिर उनमें से कुछ ग्रंथ ही आएंगे। मतलब आज बहुत सारे ग्रंथ हैं उनमें किसी किसी में थोड़ा बहुत difference भी है तो क्या सबको आगम मानना चाहिए ? बहुत से ग्रंथ तो संपूर्णतया गलत मान कर जैन परंपरा से पूरे ही हटा ही दिए गए हैं।
मुनि सौरभ सागर तो अपनी पुस्तक “मंगलम पुष्पदंताद्यो” में लिखते हैं कि षटखंडागम ही केवल आगम है उनकी इसी पुस्तक के कुछ फोटो मैं नीचे पेस्ट कर रहा हूं आप लोग अपनी राय दें ।