जैन धर्म में आगम किसे कहा गया है?

पूर्व आचार्यों ने लिखा है कि आगम की वाणी तलवार पर पानी की बूंद के समान कट्टरता से माननी चाहिए अब प्रश्न यह है कि आगम में सारे के सारे उपलब्ध ग्रंथ आएंगे या फिर उनमें से कुछ ग्रंथ ही आएंगे। मतलब आज बहुत सारे ग्रंथ हैं उनमें किसी किसी में थोड़ा बहुत difference भी है तो क्या सबको आगम मानना चाहिए ? बहुत से ग्रंथ तो संपूर्णतया गलत मान कर जैन परंपरा से पूरे ही हटा ही दिए गए हैं।

मुनि सौरभ सागर तो अपनी पुस्तक “मंगलम पुष्पदंताद्यो” में लिखते हैं कि षटखंडागम ही केवल आगम है उनकी इसी पुस्तक के कुछ फोटो मैं नीचे पेस्ट कर रहा हूं आप लोग अपनी राय दें ।

Is granth k pdf ki link send kijiye.

There is no pdf but a hardcopy with me.

Still if you want, I can scan and upload since there are only 170 pages.

1 Like

मुजे भी चाहिए ।

1 Like

Pl send the page just after this one -

1 Like

Thanks

1 Like