सम्यग्दृष्टि होने के लिए किन किन साधनों की आवश्यकता होती है? क्या बाह्य सामग्री के काम या अधिक होने पर सम्यग्दर्शन प्राप्ति में कोई फर्क पड़ता है?
हाँ फर्क पड़ता है।
जैसे कि लब्धि पर्याप्तक ही हो।
संज्ञी पंचेन्द्रिय हो।
अर्धपुद्गल परावर्तन काल मात्र शेष बचा हो।
मिथ्यात्व अवस्था मे हो।
इत्यादि बहुत कुछ।
सबसे आवश्यक है सम्यक श्रद्धान। ज्ञान से कोई फर्क नही पड़ता।
बाह्य में अन्याय अनीति अभक्ष्य का त्याग।
तत्व का सही ज्ञान(भेदज्ञान)।
जैसे कि लब्धि पर्याप्तक ही हो।
अर्धपुद्गल परावर्तन काल मात्र शेष बचा हो।
What does the above mean? Please explain
What does labdhi paryaptak means? And what does it mean Ardhpudgal paravartan sesh ho? I mean how it relates to the eligibility to attain samyag darshan?
पर्याप्तक उसे कहते हैं जिसकी पर्याप्तियां पूरी हो चुकी हों।
जीव 2 प्रकार के होते हैं।
- पर्याप्तक
2.अपर्याप्तक
अपर्याप्तक 2 प्रकार के होते हैं-
- लब्धि अपर्याप्तक(अपर्याप्त नाम कर्म का उदय)
- निवृति अपर्याप्तक(पर्याप्त नाम कर्म का उदय)
निर्वृत्ति अपर्याप्तक जीव के पर्याप्तियां पूर्ण तो नही हुई हैं लेकिन नियम से पूर्ण होंगी।
लब्धि अपर्याप्तक की पर्याप्तियां कभी पूर्ण नही होती और उसका अन्तर्मुहूर्त में मरण हो जाता है।
अब सम्यक्त्व के लिए संज्ञी होना जरूरी है। संज्ञी जीव वही होता है जिसके छहों पर्याप्तियां पूर्ण हो चुकी हों।
अर्ध पुदगल परावर्तन काल चूँकि अनंत वर्ष का ही काल है किंतु सम्यक्त्व होने के बाद पूर्ण पुदगल परावर्तन काल तक संसार मे जीव नही भटकता। अर्धपुद्गल परावर्तन काल के अंदर अंदर ही मोक्ष चला जाता है।
जिसका अर्धपुद्गल परावर्तन काल मात्र ही शेष बचा होगा उसे ही सम्यक्त्व होगा अथवा सम्यक्त्व उसे ही होगा जिसके अर्धपुद्गल परावर्तन काल मात्र शेष बचा हो। (अन्वय व्यतिरेक व्याप्ति)
The eligibilities are not based on any logical rules. सर्वज्ञ has never (past, present, future) seen anyone who had attained सम्यक्त्व if the soul have more than अर्धपुद्गल परावर्तन काल with karmic bondage so why will there be problem in saying that जिसका अर्धपुद्गल परावर्तन काल मात्र ही शेष बचा होगा उसे ही सम्यक्त्व होगा।