मंगलाचरण में बदलाव कहां तक उचित

http://sourabhsagar.com/latest-artical.aspx?id=9

मंगलम पुष्पदंताद्यो बोलते हैं सौरभ सागर जी महाराज instead of कुंदकुंद for shri pushpadant bhutbali (Shatkhandagam) ??

I came to know this yesterday by seeing a 16 minute video of channel mahalaxmi.

Are the reasons given by him have any relevance ? Even he has published a book on it citing his reasons ?

यह सब कषाय बढाने और पंथ वाद बढ़ाने वाले विषय है।
जहां पर दूसरे को गलत और अपनी मान्यता को किसी भी तरह संहि करने का प्रयास किया जाता हो उन सबसे दूर रह कर जिनवाणी का यथार्थ स्वाध्याय करे।

हमे आगम में जो लिखा है उसी को ही मान्य रखकर स्वादध्याय करना चाहिए।

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Not directly an answer to the question, but the nature of वक्ता and श्रोता has to be understood by us.
Gatha 4,8 of पुरुषार्थ सिद्धि उपाय




The last answer is of very much importance.

Ideally, we should definitely read Gatha 1-8 of पुरुषार्थ सिद्धि उपाय by आचार्य अमृतचंद्र

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:+1::ok_hand: स्पष्ट एवं उचित समाधान

@Sulabh ji’s answer is our principal ideology for all times and all such cases.

For this particular case, पुष्पदन्त आदि is commendably comparable to कुन्दकुन्द आदि।

षट्खण्डागम को प्रथम श्रुत स्कन्ध का प्ररूपक ग्रन्थ कहा जाता है। इसके अधिकतम श्लोकों के कर्ता पुष्पदन्त आचार्य होने से और कुन्दकुन्द के समकालीन होने से उनका पद विशिष्ट है।

किन्तु परिस्थितियाँ इस सहजता के प्रस्फुटन से थोड़ी भिन्न हैं क्योंकि जहाँ परम्परा का विच्छेद होता है, वहाँ कोई कारण अवश्य होता है।

क्रिया और परिणाम की बात तो हुई अब, रही अभिप्राय की बात तो यदि इस बदलाव के पीछे आ. कुन्दकुन्द और उनके आध्यात्मिक योगदान से नाराज़गी/विरोध/सामाजिक प्रतिशोध/असंतोष है, तो यह कतई उचित नहीं है।

(हमें चाहिए कि किसी भी बात को मुद्दा बनानारूपी अशोभनीय कार्य से बचें; सांसारिक शिथिलताओं से बचा जा सकता है, रोका नहीं।)

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