समयसार नाटक में क्षयोपशम सम्यक्त्व और वेदक सम्यक्त्व को अलग अलग कहा है एवं उनके भेद प्रभेद भी बताये है और मोक्ष मार्ग प्रकाशक में वेदक सम्यक्त्व को ही क्षयोपशम सम्यक्त्व कहा है। ये दोनों कथन किस अपेक्षा से कहे गए है?
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आपका प्रश्न अच्छा है।
यहाँ पर बनारसीदासजी ने अलग अपेक्षा बताया है।इसमें क्षयोपशम सम्यक्त्व के तीनों प्रकार में
सात प्रकृति ( दर्शनमोह की तीन और चारित्र मोह की अनंतानुबंधि की चार) प्रकुति में से कोई भी प्रकुति का उदय नही बताया है।मात्र क्षय और उपशम ही है। इस अपेक्षा से यहां निर्दोष सम्यक्त्व है।
और
वेदक सम्यक्त्व के चारो प्रकार में सम्यकप्रकृति का उदय बताया है।
सम्यकप्रकृति के उदय से वेदक सम्यक्त्व बाताया है।
यह सदोष (चल मल अगाढ़ आदि दोष) सम्यक्त्व है।
यहां क्षयोप्शमिक और वेदक सम्यक्त्व में निर्दोष और सदोष सम्यक्त्व ऐसा भेद ख्याल में आता है।
टोडरमलजी जी अपेक्षा में सर्वघाति प्रकुति को मुख्य करके कथन है।जो सम्यक्त्व प्रगट नही करने देती।
यहां पर बनारसीदास जी अपेक्षा विशेष है।
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