एक साधक प्रशंसा की इच्छा से कैसे बचे… इसके लिये कुछ प्रेरणात्मक वाक्य बताइये।
परमार्थ से प्रशंसा (और निंदा) अर्थक्रिया करने में समर्थ नहीं है।
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एक बात हमेशा ध्यान रखे दूसरा व्यक्ति कभी आपकी प्रशंसा कर ही नहीं सकता।
सिर्फ चापलूसी करता है अपना काम निकालने के लिए ।
तारीफों के पुल के नीचे मतलब की नदी बहती है।
आपने कभी ध्यान दिया होगा । दुनिया में जितने भी काम होते है न। पढ़ाई-लिखाई , नौकरी, सजना संवरना सब कुछ कोई भी व्यक्ति खुदके लिए नहीं करता सिर्फ दूसरो को दिखाने के लिए , दूसरो से प्रशंसा सुनने के लिए, और कमाल की बात ये है कि जिस दूसरे को दिखाने के लिए आप अपना पूरा जीवन व्यर्थ गवां देते है , वो दूसरा व्यक्ति भी आपको दिखाने के लिए जीवन व्यर्थ गवां देता है,
उदाहरणस्वरूप:- जैसे आप अपने दोस्त के साथ कहीं घूमने जाते है अच्छे से सज-संवरकर आप अपने दोस्त से बड़ी उत्सुकता से पूछते है कि में कैसा लग रहा हूं, और वो दोस्त बिना देखे ही बोलता है तू तो अच्छा लग रहा है यार ये बता में कैसा लग रहा हूं।
मतलब सबको सिर्फ प्रशंसा सुननी है । । सुनानी नहीं ।
और अगर कोई प्रशंसा कर रहा है तो समझ लेना वो या तो आपके मजे ले रहा है। या आपसे कोई काम निकालने वाला है। इसलिए प्रशंसा सुनकर जो खुश हो जाए वो सबसे बड़ा बेवकूफ हैं।
ये जितने भी बड़ी बड़ी डिग्री के लिए खूब पढ़ाई करने वाले बडी नोकरी वाले है ये पूरी लाइफ मेहनत करते है सिर्फ इसलिए ताकि दूसरा व्यक्ति कहे की ये इस पोस्ट पर है मेहनती है बस वरना पेट भरने के लिए इन सब की जरूरत नहीं थी।
सूखी होने का मंत्र है जितनी जरूरत है उतना काम करो बाकी समय स्वयं के विषय में चिंतन करो।
प्रशंसा के विषय में और बहुत महत्वपूर्ण बाते बताता में लेकिन इतना सारा टाइप नहीं कर सकता उम्मीद है आप समझ जाएंगे।
dhanyawaad… ye bahut badiya lagaa
You can think that why to do show off for these pancham kaal people and waste our precious time. Our good actions today are reflected & were reflected before in keval gyan of infinite kevalis.