समुदघात के विषय पर

मारणान्तिक स्मूदघात में कोनसी कर्म प्रकुती को निमित्त होगी?

मारणान्तिक समुद्‌घात में कौन कर्म निमित्त है
ध.६/१,९-१,२८/५७/२
अचत्तसरीरस्स विग्गहगईए उजुगईए वा जं गमणं तं करस फलं।
ण, तस्स पुव्वखेत्तपरिच्चायाभावेण गमणाभावा।
जीवपदेसाणं जो पसरो सो ण णिक्कारणो, तस्स आउअसंतफलत्तादो।

प्रश्न –पूर्व शरीर को न छोड़ते हुए जीव के विग्रहगति में अथवा ऋजुगति में गमन होता है, वह किस कर्म का फल है?

उत्तर –नहीं, क्योंकि, पूर्व शरीर को नहीं छोड़ने वाले उस जीव के पूर्व क्षेत्र के परित्याग के अभाव से गमन का अभाव है (अत: वहाँ आनुपूर्वी नामकर्म कारण नहीं हो सकता)। पूर्व शरीर को नहीं छोड़ने पर भी जीव-प्रदेशों का जो प्रसार होता है, वह निष्कारण नहीं है, क्योंकि, वह आगामी भवसम्बन्धी आयुकर्म के सत्त्व का फल है।

http://jainkosh.org/wiki/मरण#5.7

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अगर इसमे हम आयु कर्म के सत्व को निमित कहेंगे तो कषाय और वेदना समुदघात में क्या निमित कहेंगे?

“सत्व का फल”? मतलब? @anubhav_jain
यदि आगामी भव संबंधी आयुकर्म के सत्व का फल बोलेंगे फिर तो सभी जीवों को मारणान्तिक समुद्घात होगा! क्योंकि सभी को आगामी आयुकर्म का सत्व है!

यहाँ पर कषाय और वेदना समुदघात को योग( आत्म प्रदेशो का कंपन) का विशेष रूप से परिणमन समजना।इसके लिए कोई कर्म प्रकूति की आवश्यकता नही है।

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फिर इसका अर्थ क्या हुआ? @Kishan_Shah

यहाँ पर कषाय और वेदना समुद्गघात में लेश्या को निमित्त कहेंगे
(लेश्या = योग = आत्म प्रदेशों के कंपन)

Credit- pt.सचिनजी manglayatan

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किशन जी,

आपका मन्तव्य उचित है कि यह समुद्घात योगात्मक कार्य है, जो कि आत्म-प्रदेशों के बाहर निकलने से सम्बन्ध रखता है।

भले ही यह कार्य किसी न किसी कर्म के निमित्त से निष्पादित होता है, फिर भी यह कार्य आस्रव के समान किसी भी कर्म का कार्य नहीं है।

इस कार्य के दौरान कार्मण शरीर साथ होने से कर्म बन्धन और उदय होता रहता है।

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