एक प्रवचन में सुना था कि एक तीर्थंकर के आगे दुसरे तीर्थंकर की स्तुति करने पर दर्शनावरण पाप बंधता है | ऐसा समोशरण में होना तो ठीक है पर क्या ऐसा मंदिर में जिनबिम्ब के आगे भी होगा?
जय जीनेन्द्र,
मेरे विचार से तो स्तुति करना कोई कर्म बंध का कारण नहीं होना चाहिए क्यूकी स्तुति मे जीनेन्द्र भगवान् के गुण गाए जाते है वो तो सभी भगवान् के समान है.
कर्म बंध का कारण तो राग और द्वेष होता है, गुण गाने से क्यू होगा?
मैं बाकी सबकी राय भी जानना चाहूंगा.
धन्यवाद
हम भगवान के गुणों की स्तुति करते हैं। सभी भगवान के गुणों एक समान ही होते है। फर्क सिर्फ इतना है कि उनके पुर्षार्थ करने की विधि।
हमारे पास अभी जो भी स्तुति करने के साधन प्राप्त है, वे तो सब हमने ही अपनी अपनी बुद्धि से उनके गुणों के गुण गान हेतु व अपनी साधना हेतु जिससे हम भी सम्यकदर्षन प्राप्त कर मोक्ष के मार्ग में आगे बढ़ पाए इसलिए गए है।
स्तुति में विताराग पने एवम् सर्वज्ञ पने की ही चर्चा होती है। हमारे भगवान वितरागी है, तो अगर हम महावीर भगवान के सामने आदिनाथ भगवान के गुण गाए या किसी और वितरगी भगवान के उससे उन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता, नहीं इससे पाप का बन्ध होता है।
हम जब स्तुति या भक्ति करते तब हमारे भाव कैसे हो रहे है उससे हमको कर्म बन्ध होता है।
हमारे बन्धे हुए कर्मो के ही फल हम भोगते है। भगवान पाप या पुण्य नहीं देते। वे हमारे किए गए कर्मो से ही बनधता है। अगर भगवान इसमें दखल देवे तो फिर वे वितारागी नहीं रहेंगे। फिर तो उन्हें भी कर्मो के बन्ध होने लगेगा क्योंकि किसिका भुरा-भला सोचेंगे तो कर्म बन्ध भी होगा। फिर वे संसारी हो जाएंगे। उनको भी सुख की एवम् दुख की फीलिंग रहेगी। भगवान को सिर्फ आनंद की अनुभूति होती है। वे संसारी नहीं होते। ये सब भगवान की defination में आ चुका है।
यहां पे जो दर्शनावरण की जो बात हो वो किस अपेक्षा से कहा गया वो देखना पड़ेगा। क्योंकि mithyadrashti जिवको दर्शनावरण होता ही है।
निश्चित रूप से स्तुति करना कर्म बंध का कारण है, भगवान के गुण गाना, स्वाध्याय करना, ये सब पुण्य बंध का कारण है, और वह भी कर्म है,। तो स्तुति करना बंध का ही कारण है,।
जैसा कि सम्भव जी ने कहा कि भगवान कि स्तुति करना पुण्य का बंध है अथार्थ यह शुभभाव हैं।
एक तीर्थंकर भगवान के सामने दूसरे तीर्थंकर भगवान की स्तुति करने में कोई ग़लत नहीं है , लेकिन अगर कोई ये मान ले कि स्तुति आदि करने से बंध नहीं होता ,तो ये ग़लत है कियोकि शूभभाव और अशुभभाव दोनों ही बंध के कारण है ।
जैसा कि समयसार में भी आया है कि बेडी सोने की हो या लोहे की बंधन का काम तो दोनों ही करती है।।
सौधरम इन्द्र तीर्थंकर के 1008 नामों से स्तुति करता है तो उसमे सभी 24 तीर्थंकरों के नाम भी गर्भित है
तो इस अपेक्षा हम किसी भी तीर्थंकर के सामने किसी और तीर्थंकर की स्तुति कर सकते है।।