पं टोडरमलजी, श्रीमद राजचन्द्रजी और पूज्य गुरुदेवश्री ये तीनो ज्ञानीजन हमारे लिए पूजनीय है।
यह तीनो ज्ञानी पुरुष प्रखर क्षयोपशम के धारक थे, फिरभी एक तुलनात्मक दृष्टिकोण से देखे तो किनका क्षयोपशम सबसे ज्यादा था ??
क्षयोपशम ज्ञान से किसी ज्ञानी या सामान्य व्यक्ति की तुलना करना गलत होगा। हमारे लिए तो सब जीव शक्ति अपेक्षा से समान ज्ञान के धारक हैं। फिर ये तो हमारे गुरुजन हैं, इनकी हमे विनय करना चाहिए।
शिवभूति मुनिराज ने ‘तुष्-मास भिन्नम’ से केवलज्ञान प्राप्त किया था। उनका क्षयोपशम इतना कम था पर आत्मा में ज्ञान शक्ति की अनंत थी। वैसी ही अनंत ज्ञान प्राप्त करने की शक्ति मुझमें, आपमे और प्रत्येक जीव में है।
किसका क्षयोपशम ज्यादा है इससे उसकी तुलना करना उसके अनंत ज्ञान की शक्ति की insult करने जैसा है। अतः आपसे अनुरोध है कि तुलनात्मक प्रश्नों में समय न गवाएं। ऐसे ही प्रश्न पूछें जिनसे हम आत्मकल्याण के समीप पहुंचें।
यह प्रश्न ज्ञानियो के प्रति प्रमोदभाव से पूछा गया है।
तीनो ज्ञानी में से बहेतर कौन यह कहना उचित नही और संभव भी नही, लेकिन गुणानुवाद से तारतम्यता की तुलना कर सकते है।
तीनो महापुरुषों के क्षयोपशम का प्रकार और विकास अलग - अलग था।
जैसे, पं टोडरमल जी के बारे में कहे तो उन्होंने गोम्मटसार जैसे गंभीर शाश्त्रोकी टिका की, वे कन्नड़ भाषा किसी के सिखाये बिना खुद से ही सीखे थे। (कोई ज्यादा परिचय जोड़ना चाहे तो जोड़ें)
श्रीमद राजचंद्रजी की कवित्व शक्ति प्रखर थी, उत्तम ज्योतिषी का ज्ञान था, शतावधान के प्रयोग, तीव्र अवलोकन शक्ति, जातिस्मरण की निर्मलता और भी…
पूज्य गुरुदेव श्री अति मार्मिक और गहन शाश्त्रो के मर्मके तल तक पहोचकर सरल भाषामे प्ररूपित करते थे। लौकिक उदाहरणों से तत्व को जोड़ना आदि वे भी प्रखर क्षयोपशम के धारक थे।
पं टोडरमल जी और श्रीमदजी को अगर किसीने हृदयस्थ किया है तो वह पूज्य गुरुदेवश्री ।
मेरी मान्यता के अनुसार पं टोडरमल जी का क्षयोपशम विशेष था।
पंडित बैनाड़ा जी के प्रवचन में सुना था ,
"एक बार की बात है, पंडित टोडरमल जी सिद्ध चक्र विधान करा रहे थे। एक दिन वो विधान करने के लिए घर से निकले, रास्ते में किसी बूढ़ी तकलीफ में मिली। वो उन्हें अस्पताल ले गए, जब बहुत देर से विधान में पहुंचे, तो लोग क्रोधित हो गए। वे कहने लगे आपकी वजह से विधान अधूरा रह गया। पंडित जी बोले, असली विधान तो आज ही हुआ है। "
पंडित टोडरमल जी लो को पूरा दिगंबर जैन समाज मानता है।
तीनो ही विद्वान श्रेष्ठ है।
गुरुदेव श्री और श्रीमदराजचंद्र जी ने द्रवयानुयोग के पर ज्यादा जोर दिया है।
टोडरमलजी ने करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रवयानुयोग तीनों पर प्रकाश किया है।
जहां बात पूज्यता की आती है वहां सिर्फ देव शास्त्र और गुरु
गुरु में भी मात्र निर्ग्रन्थ वीतरागी मुनिराज ही आएंगे।
बाकी अन्य 11 वी प्रतिमा तक के श्रावक का यथायोग्य आदर
करना परंतु अष्टद्रव्य से पूजन मात्र पंचपरमेष्ठी की ही कर सकते है।
बाकी अन्य विद्वान या प्रतिमा धारी श्रावक की जयकारा भी नही बुला सकते।( विशेष मोक्षमार्ग प्रकाशक पेज - 185 and 186)
तीनो विद्वानों का हमारे पर अनंत उपकार है।
Pandit Todarmal is incomparable. Agar vo 30 saal aur jee lete to pata nahi aaj Jain literature kitna zyaada viksit hota.