अष्टमी चतुर्दशी की महत्वता

अष्टमी चतुर्दशी की महत्वता के पीछे क्या क्या कारण है?

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अष्टमी चतुर्दशी हमारे शाश्वत पर्व है।

कहानी का मुजे पता नही है परंतु इस मेने सुना है
अष्टमी मतलब हम आठो कर्मो से मुक्त हो कर सिद्ध बनना यह भाव है।
चतुर्दशी मतलब 14 गुणस्थानों से पार सिद्ध भगवान बनने की भावना।

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इस सन्दर्भ में ये भी उदाहरण आता है की जिस प्रकार वर्षा कल में बोई हुई फसल विशेष फल देती है, उसी प्रकार से अष्टमी चतुर्दशी आदि पर्वो पर किया हुआ धर्म भी विशेष फल की प्राप्ति देता है। यह भी इन पर्वो की महत्वता को दर्शाता है।

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अष्टमी-चतुर्दशी (twice in a month), अष्टान्हिका-दस लक्षण (thrice in an year) आदि शाश्वत पर्व हैं। अनादि से हैं तथा अनंत काल तक रहेंगे अतः कोई कारण नहीं हैं। And these are celebrated globally like:

कार्तिक फागुन साढ़ के, अंत-आठ-दिन माँहिं | नंदीश्वर सुर जात हैं, हम पूजें इह ठाहिं ||१||

Correct me if not accurate : )

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•सामान्य रूप से अष्टमी और चतुर्दशी को हम संयमित दिनचर्या को अपनाते हैं। अर्थात एकासन, उपवास आदि करते हैं।

•जैन धर्म की प्रत्येक क्रिया के पीछे कारण अवश्य होता है। इसमें भी कुछ कारण है। यथा -
• अष्टमी और चतुर्दशी को समुद्र में आए ज्वार भाटे के कारण प्राकृतिक परिवेश इस प्रकार का हो जाता है कि उन दिनों हम उपवास आदि से रहे हो शारीरिक स्वास्थ्य कुशल रहता है।

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अष्टमी/चतुर्दशी तथा अष्टान्हिका आदि शास्वत पर्व हैं। इन दिनों में पाप कार्यो से बचने हेतु धारण किया संयम विशेष फलदायी होता है। इन दिनों में की गई भगवान की भक्ति,पूजन तथा व्रत आदि विशेष महत्व के होते हैं।

:pray:t2:
प्रतिदिन जिनेन्द्र प्रभु के दर्शन करना अपना मनुष्य जीवन मिलना सार्थक करना है अतः प्रतिदिन देवदर्शन करना चाहिए। जो लोग प्रतिदिन देवदर्शन नहीं कर पाते उनको कम से कम अष्टमी/चतुर्दशी आदि पर्व के दिनों में देवदर्शन अवश्य करना चाहिए।

:pray:t2:
जो लोग प्रतिदिन देवदर्शन करते हैं उनको अष्टमी/चतुर्दशी आदि पर्व के दिनों में श्रीजी के अभिषेक व पूजन आदि के माध्यम से अपने जीवन को धन्य करना चाहिए।

:pray:t2:
जमीकंद का उपयोग घोर हिंसा का कारण है अतः इनका सेवन नहीं करना चाहिए। जो लोग इनका उपयोग करते हैं उनको पर्व के इन दोनों में इनका त्याग करके सुख की ओर आगे बढ़ना चाहिए।

:pray:t2:
इस दिन रागादि भावों को कम करके ब्रह्मचर्य के साथ रहना चाहये

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शाश्वत अर्थात जो हमेशा रहे। पर दिन रात का भेद तो 4th काल से शुरू होता है तो तिथियां भी तभी से शुरू होती होंगी। फिर शाश्वत कैसे कहे?

भोगभूमि के काल में कोई धर्म नही होता है।कोई जिनमंदिर जिन प्रतिमा ,मुनिराज आदि कोई नही होता है,फिर भी हम कहते है जैन दर्शन अनादि अनन्त है।
यहां पर मात्र भरत क्षेत्र की बात नही है अपितु तीन लोक की बात है जहां विदेहक्षेत्र,मध्यलोक, ऊर्ध्वलोक आदि सभी को ध्यान में रखकर कहा है।

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अष्टमी-चतुर्दशी मात्र 1 पक्ष के 2 दिन हैं। इन्हें मनाया जाना या नहीं मनाया जाना हम पर है न कि दिन-रात पर।

साथ ही,
समन्तभद्र आचार्य ने प्रोषधोपवास के प्रकरण में कहा है -

साथ ही,

इसके अलावा ऐसे कई धार्मिक, ज्योतिषी, प्राकृतिक, भौतिक, जीव-विज्ञान कारण हैं, जिनसे इन दिनों के चुनाव का वैशिष्ट्य सुस्पष्ट ही है।

आज तो जब की शारीरिक/मानसिक परिस्थितियाँ विकल हैं, इनमें अवश्य एकासन या उपवास या अवमौदर्य (और कुछ न हो सके तो दिन में 4 बार खाते हों तो 2 बार ही सही) करके स्वयं को मनुष्यत्व का दान अवश्य देना चाहिए।

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DISCALIMER- I’m unable to find any agam adhaar’s regarding the points given below its solely based on logic’s, so if incorrect in any manner please help me rectify.

There can be a connection of these eternal parvas to the change in the tides and the seasons as these changes contribute to high growth in the life birth(as the change in the atmosphere causes the birth of samoorchan’s)

For instance when there is a spring tide a day before that Chaturdashi occurs and at neap tide, a day after that Ashtami occurs and also at the time of dash lakshan parvas their is a change in the seasons(temperatures converge, which contributes to life birth).

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