63 शलाका पुरुष सम्यक्दृष्टि है या नहीं?

क्या सारें शलाका पुरुष जन्म से सम्यग्दृष्टि होते हैं? अगर नही तो क्या उन्हें उस भव में सम्यग्दर्शन प्राप्त होता ही है ऐसा अनिवार्य है? भले ही वो छूट जाए उसी भाव में?

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  1. तीर्थांकर नियम से सम्यकदृष्टि ही होते हैं।
  2. नारायण प्रतिनारायण नियम से मिथ्यादृष्टि होते हैं।
  3. बाकियों का नियम नहीं है, ये भी नहीं की उस भव में सम्यकदर्शन हो ही।
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क्या मिथ्या दृष्टि तीर्थंकर पद का बंध कर सकता है? जैसे रावण ने किआ था, वो तो मिथ्यादृष्टि था।

नहीं, मिथ्या दृष्टि तीर्थंकर प्रकृति नहीं बंधता है, क्योंकि इसका बंध 4- 8 गुणस्थान पर्यन्त होता है।

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फिर रावण ने तीर्थंकर प्रकर्ति का बंध कैसे किआ ?

नारायण और प्रतिनारायण मिथ्यादृष्टि ही होते है इस कोई ग्रंथ में नही आता वे स्मयक्तद्रष्टि हो सकते है।

तीर्थंकर जन्म से क्षेपक्षामिक या क्षयिक कोई भी सम्यकदृष्टि हो सकते है।बादमे नियम से क्षयिक ही बनेंगे

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@Kishan_Shah
आप ये कैसे कह सकते हो? समयकदृस्टि मनुष्य नियम से स्वर्ग जाता है, नारायण और प्रतिनारायण नियम से नरक में जाते है।

क्षायिक स्मयक्तद्रष्टि भी नरक में जा सकता है।पेहले आयु बांध कर ले तो।

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Adding one more question to this -

क्या शलाका पुरुषों का पद सम्यग्दृष्टियों को ही प्राप्त होता है ? अर्थात् पूर्व भव में सम्यग्दृष्टि हो और वर्तमान भव (शलाका पुरुष) में वह सम्यक्त्व रहे या न रहे, किन्तु क्या बन्ध के समय सम्यक्त्व अनिवार्य है ?

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Haan.

Shalakapurusha aadi ka pad sirf samyakdrishti jeevo ko hii prapt hota hai. Aur woh bhi sirf wahi jeev jo purv janmo mai muni avastha dharan karke mahaan tapascharan ke saath punya ka arjan bhi karte hai aur nirjara ke bhi patra bante hai.

Kyunki shalakapurusha aadi ka pad mahaan punya se hii dharan hota hai isiliye mithyadrishti jeev unn pado ko prapt nahi kar paate as unke itni mahaan karm nirjara aur punya bandh ho hii nahi paati jo kinhi samyakdrishti muniraaj ke sadhaaran roop se ho jaati hai.

Chahdhaala ki dhaal 4 mai iss principle ko demonstrate karne ke liye 1 sutra bhi diya hai jiski pehli 2 lines kuch iss prakaar hai -

Koti janm tap tapey gyaan bin karm jhare jay
Gyaani ke chhin maahi trigupti te sahej tarey tay

Meaning :- The amount of nirjara done by a mithyadrishti jeev even if he becomes a muni and follows perfect conduct for a minimum 1 crore lives is equal to the amount of nirjara a samyakdrishti jeev(who merely possesses the 3 guptis) accomplishes within a moment.

Tirthankar aur balbhadra aadi jo hai wo toh niyam se wahi jeev bante hai jo mahaan tapascharan bina nidaan ke karte hai matlab bina kisi fal ki iccha ke.

Narayan aur pratinarayan woh jeev bante hai jo mahaan tapascharan karte hai par vair baandh lete hai aur saath hii saath nidaan bhi karte hai.

Chakravarti mai dono sambhav vivastha hai. Matlab koi koi bina nidaan ke ban jaate hai jaise ki bharat chakravarti. Evam koi koi nidaan se bante hai jaise ki Subhom Chakravarti.

Parentu avashakta itni toh hai hii ki purv ke bhavo mai samyakdrishti muni maharaaj bankar bahot uccha koti ka tap aadi karna padta hai tab unme se koi virlay prani inn pado ko prapt kar paate hai.

Jo nidaan kar lete hai woh actually yeh soch baith tay hai ki meri tapasya mai dum ho toh mai falaan shalakapurusha pad prapt karlu aisa.

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हाँ, शलाका पुरुषों के पद सम्यग्दृष्टि के प्राप्त होते हैं। उनमें नारायण व प्रतिनारायण के निदान होता है और तुरंत सम्यग्दर्शन छूट जाता है व तीसरे भव में respective पद प्राप्त होता है।

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•रावण ने जब तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया था तब वह नियम से सम्यकदृष्टि होगा। परन्तु क्षायिक सम्यक्त्व नहीं होने के कारण बाद में छूट गया होगा।

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कुछ नियम है -
१) तीर्थंकर प्रकृति छायिक सम्यकदृष्टि को ही बंधती है
२) तीर्थंकर प्रकृति बंदने के बाद अधिकतम ३ भव ही शेष रहते है ।

संसार में उत्कृस्ट आयु (३ पल्य मनुष्य, ३३ सागर देव) - सो (३ पल्य+३३+३ पल्य) = 33 सागर approx,
पर यदि आप देखेंगे तो कृष्ण मुरारी, रावण काफी आगे के तीर्थंकर होंगे । कृष्ण मुरारी सायद १६ बे तीर्थंकर होंगे । सुरु के ३-४ तीर्थंकरो के बाद आगे के तीर्थंकरो में गैप बहुत होगा जो की 33 सागर से अधिक है, इससे ही पता चलता है की अभी उनके तीर्थंकर प्रकृति का बंध है नहीं बल्कि भविस्य में होगा । महावीर भगवान त्रिप्रस्त वासुदेव मरकर नरक गए फिर पसु हो दुबारा नर्क गए फिर पसु हो १० भव बाद तीर्थंकर हुए । ऐसे ही ये वासुदेव मरके नर्क गए अब कुछ भवो बाद तीर्थंकर होंगे । जो जांग का बाल तोड़ वीणा बजाय तीर्थंकर प्रकृति बंधी - ये कथन श्वेतामबर पुराणों में है दिगम्बरो में नहीं ।

Padmpuran (Pg 755),

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क्षम्यतां,
• परन्तु तीर्थंकर प्रकृति का बंध चारों (प्रमोपशम, द्वितीतोपशम, क्षयोपशम, क्षायिक) सम्यक्त्व में ही होता है।( रत्नकरण्ड श्रावकाचार)
• हाँ, यह अवश्य हो सकता है कि रावण को अभी तीर्थंकर प्रकृति का बंध नहीं हुआ हो बाद में हो। परंतु बंधने के बाद तीसरे भाव में अवश्य ही मोक्ष जाएगें।

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Thanks for the correction @Amanjain

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आपका उत्तर अत्यन्त सटीक एवं शिरोधार्य है किन्तु ये विषय विस्तार से कहाँ पढ़ने को मिलेगा?

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Actually I don’t know exactly because I’ve learnt it through Pandit Ratanlal Benada Ji’s paathshaala. But most probably we can read more about this in prathamanuyog since that’s where most of these things are mentioned about.

I believe there is also a granth called “Trishastishalakpurush” which is specifically about these 63 great men. Although I’m not completely sure about this!

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जैन सिद्धत प्रवेश रत्नमाला

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बलभद्र भी उस भव मे सम्यक दर्शन को प्राप्त करके, दीक्षा लेके, या तो स्वर्ग जाता है, या फिर सिद्ध होता है।