संस्कार क्या होते है ? पूर्व भव के संस्कार इस भव में कैसे transfer होते है ?
आत्मा के गुण संस्कार है। गति 4 होती है , मनुष्य, त्रियंच, देव और नरक। हर गति में एक कषाये की विशेषता है,
नरकगति में – क्रोध कषाय
त्रियंचगति – मायाचारी
देवगति में – लोभ कषाय, और
मनुष्यगति – मान कषाय सबसे ज्यादा होती है !
यह भी एक सर्व विदित तथ्य है की जीव जहाँ से आता है, प्रायः वहाँ के संस्कार अगले भाव में बिना सिखाये ही दिख जाते हैं।
इसका अर्थ है अगर किसी व्यक्ति में क्रोध बहुत अधिक है, तो हो सकता है , वो व्यक्ति नरक से आया हो।
क्योकि वो संस्कार आत्मा में होते है, तो वो हमारे साथ अगले भव में भी जाते है। उपर उद्धरण दिए है, की संपूर्ण अच्छे कार्यो का फल यहाँ नहीं मिलेगा, स्वर्ग में मिलेगा। लेकिन हमे स्वर्ग प्राप्त हो ऐसी इच्छा नहीं करनी चाहिए।
सम्यकदृष्टि मनुष्य नियम से स्वर्ग जाता है(अगर किसी और गति का बंध ना किआ हो), लेकिन अगर कोई जीव स्वर्ग की इच्छा रखता है तो , निसंदेह मिथ्यादृष्टि है।
अपने जीवन में पाए धर्म संस्कारो को अगर और अच्छी तरह साथ ले जाने हो तो समाधी मरण करे। ऐसा व्यक्ति स्वर्ग में पहुँच तो जाता है, लेकिन वहाँ के भोगो में भी उसका मन नहीं लगता। क्योकि पूर्व भाव के धरम संस्कार साथ है , तो वो वहाँ भी शुभोपयोग में लगा रहता है, जिनेन्द्र पूजा भक्ति करता रहता है। अपने देव भव से दुखी रहता है, तप आदि करने की तीव्र इच्छा रखता है।