उपशम श्रेणी चढ़ने वाला क्षायिक सम्यग्दृष्टि संबंधित

उपशम श्रेणी चढ़ने वाले क्षायिक सम्यग्दृष्टि की श्रेणी आरोहण में क्या विशेषता होती है? क्या वो जीव भी ग्यारहवें गुणस्थान में जाता है और नीचे गिरता है? उसके उपरांत फिर क्षपक श्रेणी चढ़ेगा?

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उपशम क्षेणी चढ़ने वाला क्षायिक सम्यदष्टि भी ग्यारवें गुणस्थान से गिरता ही है,ग्यारवे गुणस्थान
से नीचे गिरने का कारण भव क्षय और काल क्षय है,अगर वो भव क्षय के कारण गिरता है,तो वह उस भव कोई भी श्रेणी नहीं चढ सकता,अगर काल क्षय के कारण कारण नीचे आया है,तो वह उस भव से क्षपक श्रेणी चढ सकता है।
उपशम सम्यग्दष्टि हो या क्षायिक सम्यग्दष्टि यदि उपशम श्रेणी चढ रहे है,तो चारित्र की अपेक्षा दोनो के 6-10 गुणस्थान तक क्षयोपशम चारित्र पाया जाता है,और 11 गुणस्थान मे दोनो के औपशमिक चारित्र पाया जाता है,अतः इस अपेक्षा अन्तर नहीं है,
-श्रध्दा अपेक्षा सत्ता और क्षय का अन्तर है।

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धन्यवाद।

इसे भी थोड़ा विस्तार से बता दीजिये।

उपशम सम्यग्यदष्टि के सात प्रकृति का उपशम रहता अर्थात वे सत्ता मे रहती हैं, और क्षायिक सम्यग्यदष्टि के सात प्रकृति का क्षय होता है।
यहाँ सात प्रकृति से दर्शन मोह त्रिक और अनंतानुबंधी चतुष्क से है।

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इसमें अनंतानुबंधी की विसंयोजना को ध्यान देने से तीन भी कहने में आ सकता है।

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श्रेणी की अपेक्षा -अनंतानुबंधी की विसंयोजना के हिसाब से अन्तर नहीं कर सकते क्योकि श्रेणी चढ़ने वाले के अनन्तानुबंधी की विसंयोजना होती है ,चाहे वह उपशम श्रेणी चढे या क्षायिक सम्यग्दष्टि श्रेणी चढे।
सम्यक्त्व की अपेक्षा कर सकते है,विसंयोजना से

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*सत्ता में तीन ही है - अभिप्राय यह है।

कोई आचार्य नियम लिखते हैं, कोई नहीं।

Questions related to topic:

यदि अनन्तानुबंधी की विसंयोजना पहले ना हुयी हो ऐसे क्षयोपशमिक सम्यक्त्वी के विसंयोजना श्रेणी में होनी चाहिए?

Is it correct to say - द्वितीयोपशम सम्यक्त्व पूर्वक / साथ में दोनों श्रेणी चढ़ी जाती हैं?

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