मिथ्या अनेकांत और मिथ्या एकांत

मिथ्या अनेकांत और मिथ्या एकांत में क्या समानता और क्या असमानता देखी जाए?


इसमें चारों की अपरिभाषा दी हैं। (राजवार्तिक, 1 अध्याय, 6 सूत्र)
इसके अलावा मिथ्या अनेकांत को इसप्रकार भी कह सकते हैं कि - वह मानता तो दोनों पक्षों को ही है, परंतु प्रयोग नहीं कर पाता है। जैसे - आत्मा शुद्ध भी है अशुद्ध भी है, ऐसा तो मानता है। परंतु कब शुद्ध क्यों है या अशुद्ध क्यों हैं अथवा कब शुद्ध है और काब अशुद्ध है। इन सबका गलत प्रयोग करना।

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