ध्यान व उसके प्रभेद

चार प्रकार के ध्यान में ‘मिथ्या दृष्टि को होने वाला पुण्य भाव’ कौन से ध्यान की श्रेणी में आएगा?

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मिथ्याद्रष्टी जीव के पुण्य भाव को आर्तध्यान में ले सकते है ,क्योकि रौद्रध्यान एकांत पाप रुप है,और मिथ्याद्रष्टी को धर्मध्यान शुक्लध्यान नहीं होते हैं।

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यदी आर्त ध्यान में लेंगे, तो उसके किस भेद में उसको समाहित करेंगे?

आर्तध्यान मे इष्ट वियोगज नामक भेद में मिथ्याद्रष्टी के शुभ भाव समाहित कर सकते हैं।

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चारों ही प्रकार में शुभ भाव घटित होना संभव हैं - example for अनिष्ट संयोगज: किसी के संयोग से स्वाध्याय करने में बाधा पर बार-बार उससे दूर होने का सोचना। We can think something similar for other types as well.

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