प्रश्न : संवर, निर्जरा भावना में ही रत्नत्रय का स्वरूप आ जाने पर धर्म भावना को अलग से सम्मिलित क्यों किया गया और यदि संवर निर्जरा और धर्म भावना में अन्तर है, तो अलग लिखने का कारण व अन्तर कृपया स्पष्ट किजिये।
बारह भावना :एक अनुशीलन
aman_jain
#2
- संवर निर्जरा में रत्नत्रय की अपूर्णता (एक देश पूर्णता) ले सकते है ।
*धर्म भावना में रत्नत्रय की पूर्णता गर्भित कर सकते है ।
संवर, निर्जरा हर किसी के नहीं होती। ये चतुर्थ गुणस्तान या उसके बाद ही होती है। लेकिन धर्म तो मिथ्यादृष्टि भी कर सकते है।
aman_jain
#4
बारह भावना के प्रकरण में जो धर्म भावना आई है ,वह रत्नत्रय रुप परिणमन ही है ,क्योकि यह बारह भावना संवर का कारण है ।