‘सम्यग्ज्ञान का अन्यथारूप’ प्रकरण में पंडित जी अभव्यसेन का उदाहरण देते हैं। कृपया अभव्यसेन की कथा बताएं।
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भावपाहुड़ की गाथा 52 में अभव्य सेन मुनि के सन्दर्भ में ऐसा बताया है कि वे एक द्रव्यलिंगी मुनि थे, उन्हे ११अंग का ज्ञान था, फिर भी उन्हें भाव श्रमणपना नहीं था ।
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पर उन्हें तो टोडरमल जी ने पापी और हिंसादि प्रवर्ति वाला बताया है।
तो वो द्रवेयलिंगी मुनि कैसे हुए होंगे।