नित्य निगोद से संबंधित प्रश्न

इन का कौन से ग्रन्थ में उल्लेख किया है

निगोद तीव्र मिथ्यात्व कर्म से जाते हैं।

निगोद के संबंध में कुछ विशेष तथ्य -

  1. साधारण वनस्पति को ही निगोद कहते हैं। निगोदिया जीव सूक्ष्म और बादर दोनों होते हैं। अन्य पृथ्वी आदि 4 भी सूक्ष्म और बादर होते हैं।
  2. बादर निगोदिया इन शरीरों मे रहते हैं - वनस्पति, विकलत्रय, पंचेंद्रिय तिर्यञ्च और मनुष्य। (गो. जी. गाथा - 199)
  3. ज़मीकंद मे बादर निगोदिया जीव रहते हैं। क्योंकि सूक्ष्म को रहने के लिए कोई आधार नहीं चाहिए।
  4. सप्तम नरक के नीचे 1 राजू प्रमाण कलकला पृथ्वी है। वहाँ निगोद आदि पाँच स्थावर रहते हैं। (कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा 120, टीका - शुभचंद्र आचार्य) वहाँ बादर निगोदिया के लिए आधार न होने से मात्र सूक्ष्म निगोदिया रहते हैं।
  5. नित्य निगोद सूक्ष्म भी है और बादर भी। (गो. जी. गाथा - 73)
  6. सूक्ष्म नित्य निगोदिया सर्वत्र पाएँ जाते हैं। 6 प्रकार के सूक्ष्म जीव (सूक्ष्म पृथ्वी आदि 4 और सूक्ष्म’ नित्य - इतर निगोदिया) लोकाकाश मे सर्वत्र पाएँ जाते हैं। (कार्तिकेयानुप्रेक्षा - गाथा 123)
  7. हम बादर की रक्षा कर सकते हैं। क्योंकि सूक्ष्म किसी से बाधित नहीं होते, न किसी को बाधित करते।
    9.इतर निगोद मे रहने का उत्कृष्ट काल अढ़ाई पुद्गल परावर्तन है।

( अन्य विशेष -
नित्य और इतर निगोदिया, दोनों बादर भी होते हैं और सूक्ष्म भी।
निगोदिया जीव पर्याप्त और अपर्याप्त होते हैं। उनमे मात्र अपर्याप्त की आयु श्वास के 18वें भाग होती है। पर्याप्त की नहीं।
प्रत्येक वनस्पति बादर ही होती है।)

आधार के लिए देखें - गोम्मटसार कायमार्गणा, जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश - भाग 3 - वनस्पति, जैन निबंध रत्नावली भाग 2 - अलब्धपर्याप्तक और निगोद निबंध

(Copied from WhatsApp Shared by Pt Rishabh ji Shastri Delhi)

3 Likes

बहुत खूब!
इसमें पॉइंट 8 कहाँ है?

नित्य निगोद के संदर्भ में एक और तथ्य ज्ञात हुआ है जो ऊपर हुई चर्चा से भिन्नता रखता है।
तत्त्वार्थ वार्तिक में नित्य और अनित्य निगोद की परिभाषा कुछ इस्प्रकार दी हुई है:

नित्य निगोद - जो तीनों कालों मे भी त्रसभाव के योग्य नहीं हैं वे नित्यनिगोत हैं।
अनित्य निगोद - जो त्रसभाव को प्राप्त हुए हैं तथा प्राप्त होंगें वे अनित्यनिगोत हैं।

अकलंक देव के इस मत से ऐसा प्रतीत होता है जैसे नित्यनिगोद से जीव कभी भी बाहर नहीं आता है। यद्यपि ऊपर प्रस्तुत जानकारी (भागचंद जी कृत आध्यात्मिक पद) में ऐसा कथन देखा गया है कि नित्य निगोद से जीव बाहर आ सकता है।

अतः यह शंका पुनर्विचारणीय है।

Screenshot 2024-01-06 at 19.51.37

4 Likes