लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

बड़े का बड़प्पन

जलगांव निवासी दोनों भाई परिस्थितिवश बंटवारा करके अलग रहने लगे। बड़ा भाई समकित अपना व्यापारादि स्वयं देखता और नौकरों के कार्यों पर भी सूक्ष्मदृष्टि रखता; अतः उसकी सम्पत्ति बढ़ती गयी।
छोटे भाई शशांक ने प्रमादी हो सारा कारोबार नौकरों के भरोसे छोड़ दिया; अत: उसके व्यापार में घाटा होने लगा। बडे़ भाई ने बीच बीच में अनेक बार समझाया, पर भवितव्यतानुसार बुद्धि हो जाती है; अतः उसकी समझ में नहीं आया। अन्त में दुकान भी बिकने की नौबत आ गयी।
बड़े भाई ने जानकारी होने पर उसे बुलाया। प्रेम से धीरज बंधाया। उसका कर्जा चुकाया और उसे अपने साथ में काम करने के लिए तैयार किया।छोटा भाई भी प्रेम के वश हो, बड़े भाई के निर्देशन में काम करने लगा। धीरे-धीरे उसकी उन्नति होती गयी। बड़े भाई ने उसका हिस्सा पुनः उसे ही दे दिया।

स्वावलम्बन और उदारता का पाठ पढ़ाते हुए, स्वाध्याय की प्ररेणा दी। स्वाध्याय से छोटे भाई की आंखें खुलीं। उसने पुण्य- पाप एवं धर्म का स्वरूप समझा और बड़े भाई का उपकार मानता हुआ, अपना जीवन सार्थक करने में लग गया।

10 Likes