लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

संतोषवृत्ति

दीपक नाम का एक युवक, जिसके पिता पहले ही परलोक सिधार गए, माता बीमार पड़ गयी, भाई-बहिन छोटे थे। आर्थिक तंगी से परेशान होकर वह जिलाधीश महोदय नैतिक विचारों के करुणाशील व्यक्ति थे। उसके वृत्तान्त को सुनकर, तुरन्त कोष से तीस हजार की सहायता हेतु कह दिया।
युवक गाँव का था। वहाँ सस्ती व्यवस्था थी। युवक ने तुरन्त कहा -“श्रीमान दस हजार से मेरा काम हो जायेगा। यह राशि भी मैं अपनी कमाई में से भविष्य में इसी फण्ड में जमा करा दूँगा।”
जिलाधीश महोदय उसकी संतोषवृत्ति से अत्यन्त प्रभावित हुए। उन्होंने उसे दश हजार रुपये तो दिए ही, उसे योग्यतानुसार अपने ही कार्यालय में लिपिक की नौकरी भी दे दी।
युवक कृतज्ञभाव से देखता रह गया। उसने माता का इलाज कराया। वे शीघ्र स्वस्थ भी हो गयी। भाई-बहनों को पढ़ाया और सत्य, ईमानदारी एवं परोपकार के संस्कार देते हुए व्यवस्थित किया। गाँव में भी कार्यालय के सहयोग से अनेक अच्छे कार्य वह निरन्तर करता ही रहा। मरणोपरांत भी गाँव के लोग उसका आदर से स्मरण करते हैं।

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