लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

कृतज्ञता

एक भले घर का संस्कारित विद्यार्थी पियूष बाहर कमरा लेकर एम.ए. में अध्ययन कर रहा था। परिस्थितिवश कमरे का किराया भी न दे सका, परन्तु मालिक ने कुछ नहीं कहा। साथ ही उसको जरूरत के अनुसार कुछ और आर्थिक सहयोग दे दिया।
अध्ययन के पश्चात् उसकी नौकरी लग गयी, उसने उन सज्जन का किराया और धन तो भेज ही दिया, बाद में भी प्रायः वह भेंट लेकर जाता रहा।
मालिक के कहने पर यही कह देता, - "आपके उपकार से तो जीवन भर उऋण नहीं हो पाऊँगा। " उसने भी जीवन में जरुरतमंदो का यथासम्भव सहयोग करने का नियम ही बना लिया था।
"स्वयं दुखों के प्रसंगों से घिरे होने पर भी उपकार का अवसर नहीं चूकना चाहिए। परोपकारी से होने वाले पुण्य से अपने लौकिक कार्य भी सहज ही हो जाते हैं।"

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