लब्धी, इसका सरल प्ररूपण खासकर की प्रयोग्य लब्धी, रत्नकरण श्रावकचार के परिपेक्ष मे दे तो उत्तम रहेगा.
प्रयोग्य लब्धि
•प्रति समय विशुद्धता बढ़ती जाती है।
•बंध के 4 भेद होते हैं।(प्रदेश, प्रकृति, स्थिति, अनुभाग) इनमें से स्थिति और अनुभाग बंध घटते है। तथा किस प्रकार घटते है और कितने अंश में घटते वह नीचे देखते हैं।
स्थिति:–
•आयु कर्म को छोड़कर शेष 7 कर्म की स्थिति ‘अन्तः कोड़ाकोड़ी सागर’ अर्थात 1 कोड़ाकोड़ी सागर बराबर हो जाती है।
•यह स्थिति का घटना स्थितिकाण्डक घात द्वारा होता है।(स्थिति का धटना ही स्थितिकांडकघात है)
•आगामी बंधन भी अन्तः कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण स्थिति को लिए हुए होता है और क्रमशः घटता जाता है।(इसे स्थितिबंधापसरण कहते हैं)(ऐसे हजारों - हजारों स्थितिबंधापसरण होने पर क्रमशः प्रकृतियों का बंधना रुक जाता है, इसे प्रकृति बंधापसरण कहते है।)
अनुभाग:–
• अशुभ प्रकृतियों का अनुभाग बंध भी अनन्तवां भाग मात्र बचता है।(परंतु यह भी बहुत होता है)
•घाती कर्मों में अनुभाग घटने का level अलग होता है और अघाती कर्मों में अनुभाग घटना का level अलग होता है।
•घाती कर्मों में लता और दारू के level का
अनुभाग होता है।
(1.लता- बेल
2.दारू- लकड़ी
3.अस्थि- हड्डी
4.शैल- पर्वत
ये 4 प्रकार के level हैं। जिसमें दूसरा पहले से अधिक मजवूत है। लता से मजबूत लकड़ी होती है, लकड़ी से मजबूत हड्डी, हड्डी से मजबूत पर्वत होता है। इसी प्रकार निम्ब, कांजीर आदि में भी समझना।)
•अघाती कर्मों में निम्ब और कांजीर के level का अनुभाग होता है।
(1.निम्ब- नीम
2.कांजीर- नीम से अधिक कड़वा और विषयला
3.विष- कांजीर से अधिक विषयला
4.हलाहल- विष से भी अधिक विषयला)
•परंतु शुभ प्रकृतियों का अनुभाग चौथें अमृत level का होता है। तथा यह अनुभाग निरंतर बढ़ता जाता है।
(1.गुड़
2.खांड
3.शर्करा(शक्कर)
4.अमृत)
ऊपर कहे गए कार्य करनी की योग्यता की प्राप्ति होना प्रयोग्य लब्धि है।
ऐसी प्रयोग्य लब्धि भव्य और अभव्य दोनों को हो सकती है।
Prapti ka naam labdhi h
Labdhi ka shabdik arth prapti h.
Hmare karmoday k anusar jis jis chij ki hme prapti ho vo labdhi.
Fir jinagam m labdhi k bhed h
5 lbdhi vala jeev hi samyaktv ka patra h iska varnan bht h
मैं लब्धि का प्रकरण मोक्षमार्ग प्रकाशक जी में पढ़ रही थी | अगर किसी विद्वान के उस विषय पर प्रवचन या नोट्स आदि हों तो यह साझा करें |
पञ्च लब्धि पर पुस्तक उज्जवला वेन शाह जी की किताब है।
आदरणीय संजीव जी के उनके चैनल you tube पर प्रवचन हैं।