सुख तथा आनंद में अंतर

एक whatsapp group पर चल रही चर्चा में आये कुछ मुख्य अंश-

सुख व आनन्द में अन्तर है। सुख गुण का घातक मोह‌ है। सुख की प्राप्ति मिथ्यात्व के अभाव पूर्वक कषाय के अभाव प्रमाण होती है।

आनन्द का आधार स्वरुप लीनता है। मोह और दर्शन, ज्ञान और वीर्य गुण की अल्पज्ञता का अभाव होने पर स्वरुप में पूर्ण लीनता व पूर्ण निराकुलता ‌होने से आनन्द की पूर्णता होती है, इसलिए इसे अनन्त सुख कहा जाता है।

वेदनीय कर्म का क्षय हो जाने पर यह अव्याबाध सुख कहा गया है।

सामान्यतः सुख शब्द का प्रयोग आनन्द के अर्थ में भी किया जाता है।

आनन्द अनन्त गुणों के स्वभाव परिणमन का समवेत वेदन है। सुख व आनन्द का यह‌ अन्तर स्वामीजी के प्रवचनों में आया है।

9 Likes

सुख और आनंद में उपर्युक्त प्रकार से अंतर कर सकते हैं, परंतु वास्तव में दोनों एक ही हैं, कोई भेद नहीं है।

4 Likes