पूजनीय कैसै हैं आ. कुन्दकुन्द देव?

1)क्या दिगम्बर मुनिराजो की प्रतिमा बनाना उचित है?
2) कुन्दकुन्द मुनिराज अभी स्वर्ग मे है । वो पयाय तो पूज्य नही। फिर उन्हे वर्तमान मे पूजने का क्या औचित्य।?

1.हाँ , बिल्कुल उचित है। देव, शास्त्र , गुरु को जिनागम मे पूज्य कहा गया है एवं पंच परमेष्ठी के अंतर्गत आचार्य, उपाध्याय और साधुपरमेष्ठी को पूज्य कहा गया है साथ ही 5 वे गुणस्थान से आगे पूज्यत्व का व्यवहार भी प्रारंभ हो जाता है।
2.कुन्दकुन्द मुनि को यदि वर्तमान देवत्व पर्याय की अपेक्षा पूजा जाता है तो वह गलत है एवं मिथ्यात्व का पोषण है किंतु यदि आचार्यत्व पर्याय की अपेक्षा पूजा जाना बिल्कुल भी गलत नही है।

15 Likes

असली परेशानी तो श्री कृष्ण को पूजने में है जो न तो तब मुनि थे न अब हो सकते हैं…

गुरु की पूज्यता - उन के द्रव्य से नहीं, उनके वचनों से भी नहीं किन्तु उनकी 3 कषाय चौकड़ी के अभाव से प्रगट वीतरागता से है जो कि बस 1 स्टेप दूर हैं पूर्ण वीतरागी+सर्वज्ञ होने के।

17 Likes

अपवाद - गर्भ-जन्म कल्याणक प्राप्त तीर्थंकर।

4 Likes

तीर्थंकर को तो भावी नैगम नय से ही पूजा जाता है?

भाई! ऐसा मानने में बहुत तकलीफ़ हो जाएगी।

जैसे हम भावी तीर्थंकर की पूजा करते है इनकी प्रतिमा भी बिराजमान करते है, भले ही वर्तमान में अभी वे नरक में ही क्यों न हो इस अपेक्षा से कह रहा हूँ

देखिए! हम गर्भ कल्याणक की पूजा अलग करते हैं और केवलज्ञान कल्याणक की अलग से।

मैं भी यही कह रहा हूँ कि उनके गर्भ और जन्म कल्याणक अपवाद हैं, जिन्हें भी पूजा जाता है।

द्रव्य निक्षेप से। हम जब कुंदकुंद आचार्य को पूजते है तो उनकी वर्तमान पर्याय को नहीं लेकिन पूर्व आचार्य पर्याय को पूजते हैं। कुंदकुंद शब्द से ही उनका आचार्य स्वरूप ही स्मरण में आएगा। वर्तमान में तो वे किसी और नाम से जाने जाते होंगे।

3 Likes

अपवाद स्वरूप गर्भ व जन्म कल्याणक की पूजा करने का क्या कारण हो सकता है?

साथ ही इसी विषय से संबंधित 2 अन्य प्रश्न भी हैं -
1)क्या ‘सोलहकारण पूजा’ को भी इसी अपवाद में शामिल किया जा सकता है? क्यों व कैसे?
2)अक्षय तृतीया पूजन, रक्षाबंधन पूजन व अन्य भी पर्व पूजन जहाँ मुनिदशा की वीतरागता की नही अपितु किसी रागमयी क्रिया की मुख्यता होती है, तो वे पूजन किस कारण से आगम सम्मत हैं?

  1. यदि तीर्थंकर बनने की भावना से कोई भी कैसी भी भावना भाये तो तीर्थंकर तो छोड़ो सामान्य पुण्य का भी हक़दार नहीं है।
    सोलहकारण पूजा उन भावनाओं की पूजा है जिसके माध्यम से सभी को वीतरागता सर्वज्ञता जैसे पवित्र गुणों की प्राप्ति हो।

  2. इन दिनों को तीर्थंकरों के उपदेश से मिले उपकार का स्मरण करने का प्रतीक माना जाता है न कि इस दिन किसी बालक को पूजा जाता हो।

साथ ही, आप पूजाओं को देखें तो गर्भ-जन्म कल्याणक के अलावा ऐसी कोई पूजा नहीं मिलेगी जिसमें किसी गृहस्थ को पूजा गया हो; सर्वत्र देव-शास्त्र-गुरु-धर्म की ही पूजाएँ मिलेंगी।

जय जिनेन्द्र!

6 Likes

प्रश्न
हम भगवान की पर्यायों को पूजते हैं या भगवान के गुणों को ?

मुझे ऐसा प्रश्न इसलिए उठा क्योंकि पूजा आदि में भगवान के गुणों का स्तवन है

पर्यायों को; क्योंकि गुण तो सभी में हैं।

पूजा, गुणानुवाद को कहते हैं किन्तु वहां गुण से आशय ऐसे गुणों से है जिनमें गुण विशेष प्रकट हो गया हो।

1 Like

धन्यवाद समाधान लिखने के लिए
मैं तो प्रश्न ही भूल गया था पर अब दोनों चीजें याद रखूँगा:pray::pray: