उपचरित सद्भूत व्यवहार नय


(refer 2nd point from image)
गुणों की पर्याय तो अशुद्ध हो सकती हैं, पर क्या गुण भी अशुद्ध हो सकते हैं? यहां जो अशुद्ध गुण-गुणी मैं भेद किया, तो वह किस विवक्षा से किया गया है, कृपया स्पष्ट किजिये!

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अशुद्ध पर्याय - असमानजातीय द्रव्य पर्यायापेक्षया (मात्र पर्याय)
अशुद्ध गुण - मतिज्ञानादि विभावरूप गुणापेक्षया (गुण+पर्याय)

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जैसे द्रव्य को अशुद्ध कहा जाता है अशुद्ध पर्याय के हेतु से, वैसे ही गुण भी अशुद्ध पर्याय से परिणामित होने से अशुद्ध कहे जाते हैं.
जैसे द्रव्य सर्वथा शुध्द नहीं कहा जाता संसार अवस्था में, वैसे ही गुण भी उसी अपेक्षा से सर्वथा शुद्ध नहीं कहे जाते. इसलिए आचार्य देव ने अशुद्ध गुण-गुणी को अशुद्ध-सद्भूत व्यवहार नय कहा है.

पर्याय में गुण का उपचार करके मतिज्ञान आदि को विभाव गुण कहा जा सकता है और वह भी अशुद्ध गुण-गुणी का उदाहरण बन जायेगा. परन्तु वह उपचार करके है. जैसा कि आलाप पद्धति में ९ प्रकार के उपचार कहे हैं.

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