मुनिराजों के विहार के समय अगर नदी आजाये, तो क्या वे उसे पार कर सकते हैं? अगर हाँ, तो कैसे?
(आगम का प्रमाण भी दें।)
मुनिराजों के विहार के समय अगर नदी आजाये, तो क्या वे उसे पार कर सकते हैं? अगर हाँ, तो कैसे?
(आगम का प्रमाण भी दें।)
भगवती आराधना, गाथा 152 की टीका, pp. 193-194
जल में प्रवेश करने के पूर्व साधु को पाँव आदि अवयवों से सचित्त व अचित्त धूलि को दूर करना चाहिए और जल से बाहर आने पर जब तक पाँव न सूख जाय तब तक जल के समीप ही खड़ा रहे। बड़ी नदियों की उल्लंघन करते समय प्रथम तट पर सिद्ध वन्दना कर दूसरे तट की प्राप्ति होने तक के लिए शरीर आहार आदि का प्रत्याख्यान करना चाहिए। प्रत्याख्यान करके नौका वगैरह पर आरूढ़ होवे। और दूसरे तट पर पहुँचकर अतिचार दूर करने के लिए कायोत्सर्ग करना चाहिए।
Courtesy: Jainendra Siddhant Kosh, Vol. 3, Pg. 574
Note: The edition of Bhagwati Aradhana which I found is a different one from that referred in Kosh. So, in Kosh, the verse no. is 150, whereas the edition which is hyperlinked here, talks of this in the commentary to verse no. 152.
जब मुनिराज ने आहार के लिए विहार किया तब तो मार्ग सूखा था परंतु आहार पूर्ण होने के पश्चात लौटते समय अधिक तेज वर्षा हो जाए तो उस समय मनुराज घुटनो से नीचे तक के पानी में विहार कर सकते हैं।