उदाहरण:- जैसे, आँगन बाहर की अपेक्षा घर के अंदर होता है और घर की अपेक्षा बाहर होता है।
सिद्धांत:- वैसे ही, शुभाशुभ भाव होते तो चैतन्य के आंगन में ही हैं परंतु चैतन्य स्वभाव की अपेक्षा वे बाहर ही हैं।
तभी तो “श्री सिद्ध पूजन” में लिखा है…
शुभ-अशुभ वृत्ति एकांत दुख, अत्यंत मलिन संयोगी हैंं।
अज्ञान विधाता है इनका, निश्चित चैतन्य विरोधी है।।
काँटों-सी पैदा हो जाती, चैतन्य सदन के आँगन में…
तथा
उदाहरण 2:- जैसे, सम्पत्ति तो घर में ही रखी जाती है, आँगन में नहीं।
सिद्धांत:- वैसे ही, उपयोग रूपी सम्पत्ति ज्ञान गृह में रखना चाहिए, शुभाशुभ भावों में नहीं।