प्रमाण-नय-निक्षेप

प्रमाण-नय-निक्षेप में समानता बताते हुए असामनता सिद्ध करो?

जीवादिक तत्त्वों को जानने के उपाय रूप; सम्यग्ज्ञान / सम्यग्ज्ञान के अंश - समानता

  1. निक्षेप द्वारा उन जीवादिक तत्त्वों का व्यवहार / न्यास होता है । उसमें भी, जो प्रथम दो निक्षेप है (नाम और स्थापना), वो मुख्यतः भाषा / लोक व्यवहार के स्तर पर है ।

नाम, द्रव्य और भाव निक्षेप कहीं न कहीं नयों जैसा ही काम करते है । नाम निक्षेप को समभिरूढ़ नय के समान देखा जा सकता है | स्थापना निक्षेप थोड़ा अलग हो जाएगा क्योंकि उसमें पूज्य-अपूज्य का व्यवहार भी आता है | द्रव्य निक्षेप में भूतकाल / भविष्य की पर्याय को वर्तमान रूप कहना ~ नैगम नय (बालकसेठ / श्रमण राजा) | भाव निक्षेप में वर्तमान पर्याय रूप ही कहना ~ (सूक्ष्म) ऋजुसुत्र नय / एवंभूत नय | (subject to correction) |

  1. नयों में वस्तु के निर्णय का प्रयोजन मुख्य है । द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक नयों द्वारा प्रमाण रूप वस्तु का निर्णय और निश्चय-व्यवहार नयों द्वारा नयातीत आत्मा की अनुभूति । इन दो अलग-अलग नयों की categories को अलग अलग देखें तो ज्यादा अच्छा है । इसका एक मुख्य कारण यह है कि व्यवहार-निश्चय नयों में निषेध्य-निषेधक संबंध है लेकिन द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक नयों में ऐसा कोई संबंध नहीं है । इसीलिए द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक नयों द्वारा प्रमाण का विषय बनता है, लेकिन निश्चय-व्यवहार द्वारा नहीं ।

This quote is from नय प्रज्ञापन as quoted in परमभावप्रकाशक नयचक्र.



Source: परमभावप्रकाशक नयचक्र, pp. 300-03

अतः ऐसा कह सकते है कि प्रमाण का विषय तो पूरी द्रव्य-गुण-पर्यायात्मक वस्तु है; नय उस वस्तु के एक अंश को ग्रहण करता है और निक्षेपों द्वारा उसमें व्यवहार होता है (मुख्यतः) |

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"निक्षेप द्वारा जीवादि का न्यास होता है ।
प्रमाण व नय द्वारा जीवादि का अधिगम होता है "। -समानता "
नय व निक्षेप में अन्तर
०नय में मुख्य गौण व्यवस्था ,निक्षेप में नहीं
०नय का विषय निक्षेप होते है ।
४७नय (प्रवचनसार)में निक्षेपो को नय बनाकर प्रयोग किया है वहाँ मुख्य गौण व्यवस्था घट जाएगी।

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