तिहारे ध्यान की मूरत | Tihare Dhyan Ki Murat

तिहारे ध्यान की मूरत, अजब छवि को दिखाती है।
विषय की वासना तज कर, निजातम लौ लगाती है ॥

तेरे दर्शन से हे स्वामी! लखा है रूप मैं तेरा ।
तजूं कब राग तन-धन का, ये सब मेरे विजाती हैं ॥(1)

जगत के देव सब देखे, कोई रागी कोई द्वेषी ।
किसी के हाथ आयुध है, किसी को नार भाती है ॥(2)

जगत के देव हठ ग्राही, कुनय के पक्षपाती हैं।
तू ही सुनय का है वेत्ता, वचन तेरे अघाती हैं ॥(3)

मुझे कुछ चाह नहीं जग की, यही है चाह स्वामी जी ।
जपूँ तुम नाम की माला, जो मेरे काम आती है ॥(4)

तुम्हारी छवि निरख स्वामी, निजातम लौ लगी मेरे ।
यही लौ पार कर देगी, जो भक्तों को सुहाती है ॥(5)

भावार्थ :-
हे प्रभो! आपकी ध्यानस्थ मुद्रा एक अलौकिक स्वरुप को प्रदर्शित करती है। जिसके अवलोकन मात्र से भोगों की इच्छाओं का त्याग करके आत्मा को प्राप्त करने की प्रेरणा मिलती है॥टेक॥
हे प्रभो! आपके दर्शन करने से मुझे मेरे आत्मस्वरुप का दर्शन हुआ है। जिसके कारण अब ऐसा लगने लगा है कि किस क्षण इस नश्वर देह और संयोगों के राग का त्याग करुं क्योंकि ये सब वास्तव में मेरे स्वरुप से भिन्न हैं॥1॥
हे प्रभो! मैनें विश्व के सारे भगवानों को देखा लेकिन इन सभी में कोई रागी और द्वेषी भासित होता हैं क्योंकि कोई भगवान हाथ में शस्त्रादि लिये हुये हैं तो किसी को स्त्रियों का संग पसंद है॥2॥
हे प्रभो! संसार के ये देव एकांत को ग्रहण करने वाले हैं और मिथ्या नय का पक्ष धरने वाले हैं। आप ही सम्यक् नयों के कथन करने वाले ज्ञानी हैं जिससे आपके वचनों का कोई विरोध नहीं कर सकता॥3॥
हे प्रभो! मुझे इस संसार सम्बन्धी कोई इच्छायें नही है। मेरी तो एक मात्र यही भावना है कि मैं मेरा कल्याण करने वाली आपके नाम की माला का सदा स्मरण करता रहूं॥4॥
हे प्रभो! आपकी सौम्य मुद्रा को देखकर मुझे भी अपने आत्मा कल्याण की इच्छा जागृत होने लगी है और यही आत्मकल्याण की इच्छा ही नियम से हम भक्तों को संसार सागर से पार कर देगी॥5॥

Meaning Source: Vitragvani

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