थे तो जिनवाणी के मारग, मारग चालो जी म्हारा मनड़ा, चालो जी म्हारा जीवड़ा,
लख चौरासी कट जासी ।।
कट जासी भैया लख चौरासी कट जासी ।।टेक।।
कुण थारे संगे आयो, कुण थारे संगे जासी।
काईं गोरख धंधा रांच्यो रे ।।1।।
पिछला भव की कमाई, इनां भव मां कुण खाई।
अगले भव की कांई सोच्यो रे ।।2।।
बातां बातां मां ही बांध्या, हस्ता हस्ता कर्म तू बांध्या।
चुकाणु पड़गो तो रोई रे ।।3।।
थाने जिनवाणी समझाए, जड़ चेतन भिन्न बताए।
थे तो भेदज्ञान को करनूं रे ।।4।।
विभाव से नाता तोड़ो, स्वभाव से नाता जोड़ो।
ज्ञायक के आश्रय से ही थाणे, थाणे जी म्हारा मनड़ा,
सच्चू मारग मिल जासी ।।5।।