तेरे ज्ञानावरन दा परदा
(राग दीपचन्दी)
तेरे ज्ञानावरन दा परदा, तातैं सूझत नहिं भेद स्व-पर- दा ।।टेक॥
ज्ञान बिना भवदुख भोगै तू, पंछी जिमि बिन पर दा ।। १ ।।
देहादिक में आपौ मानत, विभ्रममदवश परदा ।। २ ।।
‘भागचन्द’ भव विनसै वासी, होय त्रिलोक उपरदा ।। ३ ।।
रचयिता: कविवर श्री भागचंद जी जैन
Source: आध्यात्मिक भजन संग्रह (प्रकाशक: PTST, जयपुर )