(चौपाई)
तीर्थ-वन्दना मंगलकारी, तीर्थ-वन्दना आनन्दकारी ।।टेक।।
महाभाग्य से हो जिनदर्शन, महाभाग्य से चरण-स्पर्शन।
भाव-विशुद्धि हो सुखकारी, तीर्थ-वन्दना मंगलकारी ॥१॥
प्रभु की शांतछवि को निरखें, परमतत्त्व को अब हम परखें।
शाश्वत ज्ञायक प्रभु अविकारी, तीर्थ-वन्दना मंगलकारी ।।२।।
आत्म साधना की यह भूमि, धर्माराधन की यह भूमि।
भायें तत्त्व-भावना प्यारी, तीर्थ-वंदना मंगलकारी ॥३॥
यहाँ संतों की याद सु-आये, मुक्तिमार्ग में मन ललचाये।।
छूटे जग प्रपंच दुखकारी, तीर्थ-वन्दना मंगलकारी ॥४॥
अहो! जिनेश्वर क्या कहते हैं, सदा सहज निज में रहते हैं।
हम भी होवें शिवमगचारी, तीर्थ-वन्दना मंगलकारी ।।५।।
हो सम्यक् श्रद्धान हमारा, हो निर्मल सद्ज्ञान हमारा।
होवें सम्यक् चारित्रधारी, तीर्थ-वन्दना मंगलकारी ।।६।।
नहीं कामना भोगों की हो, नहीं याचना वैभव की हो।।
प्रभु सम प्रभुता होय हमारी, तीर्थ-वंदना मंगलकारी ।।७।।
भक्ति भाव से प्रभु गुण गावें, प्रभु को हृदय माँहिं बसावें।
सफल वंदना होय हमारी, तीर्थ-वंदना मंगलकारी ॥८॥
Artist - ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’