(तर्ज : ध्रुव ज्ञायक ही शरणा… )
तीन लोक चूड़ामणि हूँ, ज्ञायक परमातम।। टेक।।
रागादिक दोषों से न्यारा, ज्ञानमात्र शुद्धातम।
सहज चतुष्टय रूप स्वयं सिद्ध निरुपम परमातम।। ॥।
विधि-निषेध से दूर नित्य जयवन्त रहे आतम।
सहज शुद्ध है परम पारिणामिक प्रभु परमातम।। 2॥।
अकथनीय अचिन्त्य है, पक्षातिक्रान्त आतम।
परमाह्ाद स्वरूप है, अनुभूतिमयी आतम।। 3।।
अक्षय परम विभवमयी, स्वतः मुक्त आतम।
ध्रुव चैतन्य प्रकाशमय सर्वांग शुद्ध आतम।। 4।।
प्रगट्यो परमानंदमय, निर्भेद ज्ञेगय आतम।
कालावली अनंत बहे, जयवंत सु-अध्यातम।। 5।।
Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Source: स्वरूप-स्मरण