सप्त भंगी का कथन स्याद्वाद के बिना संभव नहीं है। फिर भी क्या स्याद्वाद और सप्त भंगी की समानता और असमानता को इंगित किया जा सकता है?
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- स्यात् - कथंचित् / किसी अपेक्षा से (from a certain perspective); वाद - कथन करना | और सप्त भंगों का प्रयोग करते समय सभी में स्यात् तो लगता ही है | इस अपेक्षा से स्याद्वाद = सप्तभंगी |
- सप्तभंग की जब भी चर्चा होती है तो हमें अस्ति नास्ति इत्यादि भंगों की ही याद आती है, परन्तु ‘स्यात् अस्ति एव’ यह प्रथम भंग नहीं है, अपितु प्रथम भंग का एक उदाहरण है |
- ‘स्यात् अस्ति एव’ अस्तित्व-नास्तित्व धर्म युगल के सन्दर्भ में उत्पन्न होने वाली सात जिज्ञासाओं में से एक जिज्ञासा का समाधान है | ‘स्यात् नित्य एव’ के साथ भी इसीप्रकार समझना चाहिए |
- अतः सप्तभंग अपने आप में एक बहुत व्यापक सिद्धान्त है और स्याद्वाद से कोई विशेष असमानता नहीं रखता | बस सामान्य-विशेष का अंतर कहना हो तो कह सकते है |
१. प्रश्न सात ही क्यों होते है ?
→ क्योंकि जिज्ञासाएँ सात प्रकार की होती है
२. जिज्ञासाएँ सात प्रकार की क्यों होती है ?
→ क्योंकि संशय भी सात प्रकार के ही उत्पन्न होते हैं |
३. संशय सात प्रकार के क्यों उत्पन्न होते हैं ?
→ संशयों के विषयभूत धर्म ही सात प्रकार के होते है |
-सप्तभंगी तरंगिणी, as quoted in परमभावप्रकाशक नयचक्र, p. 352
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सप्तभंगी व्याप्य स्याद्वाद व्यापक है ।
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ऐसा कैसे कह सकते हैं?
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