स्वानुभव की प्रेरणा | Swanubhav Ki Prerna

स्वानुभव की प्रेरणा

(तर्ज : शांत चित्त हो निर्विकल्प हो … )

चिदानंद चिद्रूप आत्मन् ! निज का अनुभव किया करो ।

सब संकल्प-विकल्प तोड़कर सुखमय जीवन जिया करो ।। टेक ॥

आशंकाओं के घेरे में, शान्ति की होली जलती है।

होनी तो होकर ही रहती, टाले कभी ना टलती है ।।

निज स्वभाव के बल से चेतन, अप्रभावित ही रहा करो ।। 1 ।।

आत्मानुभव ही परम रसायन, परमौषधि अरु परमामृत।

आत्मानुभव से रहित आत्मा जीवित होने पर भी मृत ।।

विषय चाह की दाह शमन को ज्ञानामृत तुम पिया करो ।। 2 ।।

आत्मानुभव होते ही तत्क्षण, सम्यग्दर्श प्रगट होता ।

महा पाप मिथ्यात्व नशाता, मुक्तिमार्ग शुरु होता ।।

पर से हो निवृत स्वयं में, सहज तृप्त नित रहा करो ।। 3 ।।

अन्तरात्मा कहलाते जब, निज सन्मुख दृष्टि होती ।

तब ही बने कार्य परमातम, जब निज में थिरता होती ।।

बस हो सर्व विकल्पों से, नित ‘मैं ज्ञायक’ यह लखा करो।। 4 ।।

रचियता - पूजनीय बाल ब्रह्मचारी पंडित श्री रवीन्द्र जी आत्मन्

Source - सहज पाठ संग्रह