श्री सुपार्श्वनाथ जिनपूजन । Suparshvnath Bhagwan Puja

            (रोला)

जिनवर पूजा भविजन को मंगलकारी है,
भाव विशुद्धि का निमित्त सब दुःखहारी है।
पार्श्ववर्ति लख देह शुद्ध चेतन पद ध्यावें,
श्री सुपार्श्व भगवान भाव से पूज रचावें ॥

ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं ।
ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं ।
ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथजिनेन्द्र | अत्र मम सन्निहितो भव भव षट् सन्निधिकरणं ।

         (छन्द-दिग्पाल)

मुनिमन समान जल ले, जिनराज चरण पूजें ।
आवागमन मिटे मम, जन्मादि दोष धूजें ॥
पूजा सुपार्श्व स्वामी ऐसी करूँ तुम्हारी।
हो तुम समान जिनवर, भावी दशा हमारी ॥

ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि. स्वाहा।

भवताप रहित प्रभु क्या? चन्दन तुम्हें चढ़ायें।
सुनकर वचन जिनेश्वर, नाशें सभी कषायें ।। पूजा ।।

ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चन्दनं नि. स्वाहा ।

अक्षत अखण्ड लेकर, जिननाथ गुण विचारें। ।
अक्षय सुगुणमयी प्रभु, निज आत्मा निहारें || पूजा . ।।

ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं नि. स्वाहा ।

ले पुष्प शीलमय जिन, होवें परम जितेन्द्रिय ।
है उपादेय भासा, हमको भी सुख अतीन्द्रिय ॥ पूजा. ।। ।।

ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय कामवाणविध्वंसनाय पुष्पं नि. स्वाहा

नैवेद्य सरस पाया, प्रभुता स्वयं स्वयं में ।
क्षुत् वेदना नशायें, रम जायें हम स्वयं में || पूजा . ||

ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि. स्वाहा ।

मोहान्धकार नाशे, पावें प्रकाश अनुपम ।
हे पूर्ण ज्ञानमय प्रभु, चरणों में आए हैं हम।। पूजा. ।।

ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशनाय दीपं नि. स्वाहा।

हों भस्म कर्म सब ही, ऐसा हो ध्यान जिनवर।
हो धर्म से सुवासित जीवन हमारा प्रभुवर। पूजा.।।

ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मविनाशनाय धूपं नि. स्वाहा।

सम्यक्त्व मूल संयुक्त चारित्र तरू लगावें।
अक्षय अनंत रसमय, मुक्ति के फल सु पावें।। पूजा. ।।

ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।

दुर्लभ सु अर्घ्य लेकर हम भावना संवारें ।
अविचल अनर्घ्य प्रभुता, निज में ही प्रभु निहारें ।। पूजा ।।

ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि. स्वाहा ।

पंचकल्याणक अर्घ्य

               (सोरठा)

गर्भागम सुखकार, भादों सुदि छटि को हुआ।
वरषे रतन अपार, सोलह सपने माँ लखे ॥

ॐ ह्रीं भाद्रपद शुक्लषष्ट्यां गर्भमंगलमंडिताय श्री सुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. स्वाहा।

द्वादशि सुदी सु ज्येष्ठ जन्मे त्रिभुवन नाथ जी। ,
इन्द्र कियो अभिषेक, पाण्डुक शिला सुमेरू पै ।।

ॐ ह्रीं ज्येष्ठशुक्लद्वादश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्री सुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. स्वाहा

आत्मीक सुखसार, लखि प्रभुवर दीक्षा धरी ।
गूँजा जयजयकार, जेठ सुदी बारस दिना ॥

ॐ ह्रीं ज्येष्ठशुक्लादश्यां तपोमंगलमंडिताय श्री सुपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. स्वाहा ।

फाल्गुन कृष्णा षष्ठि हुए स्वयंभू नाथ जी।
हर्षमयी हुई सृष्टि, दिव्य बोध को पाय के ।।

ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णषष्ट्यां ज्ञानमंगलमंडिताय श्री सुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. स्वाहा ।

शिखर सम्मेद महान, फाल्गुन कृष्णा सप्तमी
प्रभु पायो निर्वाण, पूजें अति आनन्द सों ॥।

ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णासप्तम्यां मोक्ष मंगलमंडिताय श्री सुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. स्वाहा ।

जयमाला

                 (दोहा)

हुए विरक्त सु जगत से, पतझड़ लख जिनदेव । |
निर्ग्रन्थ पथ अपनाय के, मुक्त हुए स्वयमेव ॥

(तर्ज चित्स्वरूप महावीर…)

श्री सुपार्श्व जिनराज, मुक्ति पथ दरशाया।
परमानन्द स्वरूप, जिनेश्वर दरशाया || टेक ||
द्रव्येन्द्रिय, भावेन्द्रिय, इन्द्रिय विषयों से प्रभु भिन्न कहा।
परम अतीन्द्रिय ज्ञानानन्दमय, सिद्ध समान स्वरूप कहा ।।
स्वानुभूत जिनमार्ग, जिनेश्वर दरशाया || श्री सुपार्श्व ॥
द्रव्यकर्म - नोकर्म-भाव कर्मों से न्यारा देव कहा
नित्य निरंजन निष्क्रिय - ध्रुव, निर्मुक्त चिदानन्दरूप अहा ।।
नयातीत पक्षातिक्रान्त प्रभु दरशाया || श्री सुपार्श्व ।।
जीवसमास मार्गणा गुणथानों से, ज्ञायक भिन्न अहा ।
टंकोत्कीर्ण सु-अलिंगग्रहण, अव्यक्त स्वानुभवगम्य कहा ॥
आश्रय करने योग्य, निजातम दरशाया || श्री सुपार्श्व ।।
नवतत्त्वों के स्वांगों से, निरपेक्ष निरामय रूप कहा ।
जिनने समझा भवदुख नाशा, नित्यानंद स्वरूप लहा ।।
हेय उपादेय भेद महेश्वर दरशाया ॥ श्री सुपार्श्व ।।
रागादिक दुख रूप बताये, वीतराग शिवपंथ कहा ।
परम अहिंसा से ही होता, भवभ्रमणा का अन्त अहा ॥
रत्नत्रय अविकार तुम्हीं ने दरशाया || श्री सुपार्श्व ।।
बहिरातमता हेय जान तज, अन्तर आतम हों स्वामी।
ध्रुव परमातम पद को साधें, तुम सम ही अन्तर्यांमी ॥
धन्य धन्य शिवरूप आपने दरशाया || श्री सुपार्श्व ।।
जब तक आराधन पूरा हो, जिनशासन का योग मिले।
निर्मल आत्म भावना वर्ते, निज गुणमय उद्यान खिले ॥
पाया स्वाश्रित मार्ग चरण में सिर नाया। श्री सुपार्श्व ।।

ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमाला अर्घ्यं नि. स्वाहा ।

                 (दोहा)

श्री सुपार्श्व जिनराज की, भक्ति करें जो कोय ।
इन्द्रादिक पद पाय के, निश्चय मुक्त सु होय ॥ ॥

पुष्पांजलि क्षिपामि ॥

रचयिता: बाल ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’

Source: अध्यात्म पूजांजलि, जिनेंद्र आराधना संग्रह