सुनो जिया ये सतगुरु की बातें, हित कहत दयाल दया तैं ।।
यह तन आन अचेतन है तू, चेतन मिलत न यातैं।
तदपि पिछान एक आतमको, तजत न हठ शठ-तातैं।।1।।
चहुँगति फिरत भरत ममताको, विषय महाविष खातैं।
तदपि न तजत न रजत अभागै, दृग व्रत बुद्धिसुधातैं।2।।
मात तात सुत भ्रात स्वजन तुझ, साथी स्वारथ नातैं।
तू इन काज साज गृहको सब, ज्ञानादिक मत घातैं।।3।।
तन धन भोग संजोग सुपन सम, वार न लगत विलातैं।
ममत न कर भ्र तज तू भ्राता, अनुभव-ज्ञान कलातैं।।4।।
दुर्लभ नर-भव सुथल सुकुल है, जिन उपदेश लहा तैं।
‘दौल’ तजो मनसौं ममता ज्यों, निवडो द्वंद दशातैं।।5।।
Artist: कविवर श्री दौलत राम जी