मुख से
साँची प्यारी बात कहूँगा, निंदा चुगली नहीं करूँगा।
नहीं किसी की हँसी उड़ाऊँ, सुंदर भक्ति गीत सुनाऊँ।।
आदर और विनय से बोलूँ, सोच समझ अपना मुँह खोलूँ।
आँखों से
भक्ति से भगवान को देखूँ, आदर से गुरुओं को देखूँ।
छोटो को स्नेह से देखूँ, दुखियों को करुणा से देखूँ।।
पर वस्तु को पर ही देखूँ, लड़कों को भाई सम देखूँ।
हर लड़की को बहन बराबर, बुरे भाव से कभी न देखूँ।।
बैठ कभी अंतर में देखूँ, अपने को परमातम देखूँ।
कान से
गंदी बातें नहीं सुनूँगा, निंदा चुगली नहीं सुनूँगा।
सदा बड़ों की बात सुनूँगा, दुखियों की पुकार सुनूँगा।।
गुरुओं का उपदेश सुनूँगा, अवसर पर ललकार सुनूँगा।
अच्छे-अच्छे कार्य करूँगा, नहीं कभी फटकार सुनूँगा।।
हाथों से हाथ
हाथ जोड़कर विनय करूँगा, सेवा और सहयोग करूँगा।
हर्ष सहित मैं दान करूँगा, आवश्यक श्रमदान करूँगा।।
अरे ! गंदगी साफ करूँगा, गुरुजन का सम्मान करूँगा।
रखकर हाथ पे हाथ अहो, तुम सम आतम ध्यान करूँगा।।
हाथों से आशीर्वाद दूँ, हाथों से ही दूँ स्नेह ।
हाथ उठाकर करूँ समर्थन, सत्कार्यों का स्नेह।।
हाथ उठाऊँ नहीं कभी भी, सज्जन या असमर्थों पर।
हाथ बटाऊँ उत्साहित हो, उठता जाए जीवन ऊपर।।
पैरों से
दौड़-दौड़ कर सदा करूँगा, अच्छे काम।
नियत समय पर सदा करूँगा सब ही काम।।
धर्म कार्य में दौड़ा जाऊँ सेवा करने दौड़ा जाऊँ।
बड़े पुकारे जल्दी जाऊँ, दुखी पुकारे दौड़ा जाऊँ।।
नहीं किसी को ठोकर मारूँ, नहीं चलूँगा टेढ़ी चाल।
कोई प्राणी दुख न पावे, पाँव रखूँगा सद सम्हाल ।।
मन से
सदा करेंगे तत्त्व विचार, सदा करेंगे श्रेष्ठ विचार।
हिंसा का नहीं करूँ विचार, चोरी का नहीं करूँ विचार |।
शीलवान हो संतोषी हो, सादा जीवन उच्च विचार।
नेक बनेंगे शिष्ट बनेंगे, दूर करेंगे भ्रष्टाचार ।।
दया, क्षमा, विनय, सरलता, संतोष, मोह, ईमान।।
दया
नहीं किसी को कभी मारना, नहीं किसी को कभी सताना।
नहीं झगड़ना गाली देना, नहीं दबाना नहीं गिराना।।
स्वयं किसी से कभी न डरना, नहीं किसी को कभी डराना।
नहीं किसी की चुगली करना, नहीं किसी की हँसी उड़ाना।।
अच्छे देखो-अच्छे बोलो, सदा सभी से प्रेम बढ़ाना।
दीन दुखी यदि तुमको दीखे, कर सहाय तुम दुख मिटाना ।।
बन्दर कुत्ते सर्प या बिल्ली, चिड़िया कबूतर, तोता पक्षी।
मक्खी मच्छर और ततैया, बकरी भैंस चाहे हो गैया।।
सभी जीव कर्मों के मारे, हो भयभीत भटकते सारे।
नहीं किसी को कभी सतायें, सावधान रह सदा बचायें ।।
क्षमा
गुससा करना बुरी बात है, गुस्सा से ही सर्वनाश हो।
धीरज धरना सहना सीखो, क्षमा शांति से रहना सीखो।।
तब ही होगी उन्नति जग में, तभी लगेगा चित्त धरम में।
विनय
नहीं बड़ा या छोटा जानो, आप समान सभी को मानो।
संयोगों का नहीं ठिकाना, मिथ्या को मन में लाना।।
सरलता
नहीं बहाना कभी बनाना, कभी न सच्ची बात छिपाना।
नहीं किसी को धोखा देना, तुम भी धोखे में मत आना।।
शिक्षा सरल भाव से लेना, अपना जीवन सफल बनाना।।
संतोष
नहीं देखकर तुम ललचाना, कभी नहीं ईमान डिगाना।
नहीं चाहने से कुछ मिलता, कर पुरुषार्थ इष्ट को पाना।
लालच जग में बुरी बला है, फूला और फला संतोषी।
धीर वीर गंभीर बनेंगे, समता से सब कष्ट सहेंगे।
नहीं कभी हम क्षोभ करेंगे।।
नहीं अकुलायें, नहीं घबराएँ, नहीं झुंझलायें नहीं चिल्लाएँ।
रो-रोकर नहीं दीन बनेंगे।।
कम बोलें धीरे बोलेंगे, सच बोलेंगे प्रिय बोलेंगे।
आगम के अनुकूल कहेंगे।।
नहीं कभी अभिमान करेंगे, छल-प्रपंच से दूर रहेंगे।
संतोषी हो सुखी बनेंगे।।
व्यवहार
कोई रोगी या निर्धन हो, दीन दुखी अथवा निर्बल हो।
अज्ञानी अथवा विज्षिप्त हो, ज्ञानी धर्मी शांत चित्त हो।।
नहीं किसी की हँसी उड़ाना, करो सदा व्यवहार सुहाना ।।
स्वच्छता
भोजन, जल, कपड़े सामान, गली पार्क बाजार मकान।
सुन्दर साफ बनायेंगे, बीमारी दूर भगायेंगे।।
सहयोग
देखो-देखो कौन गिर गया ? दौड़ो उसे उठायें।
उसकी मलहम पट्टी करके, उसको सुख पहुँचाएँ।।
उसका जो सामान गिर गया, उसको ठीक समहोरें।
यथाशक्ति सहयोग करें हम, अपना फर्ज निभाएँ।।
श्रम
देखो-देखो चींटी चलती, देखो-देखो चींटी चलती।
पंक्ति बना के चींटी चलती, श्रम का पाठ पढ़ाती।।
हम जैसे हैं वे भी जीव, उनकी रक्षा करो सदीव।
नीचे देख-देख के चलना, नहीं दबाना नहीं सताना।।
Artist: बाल ब्र. श्री रवीन्द्रजी ‘आत्मन्’
Source: बाल काव्य तरंगिणी