सुन्दर दशलक्षन वृष सेय सदा। Sundar Daslakshan Vrish Sey Sada Bhai

सुन्दर दशलक्षन वृष, सेय सदा भाई ।
जातैं ततक्षन जन, होय विश्वराई । । टेक ।।
क्रोध को निरोध शांत, सुधाको नितांत शोध ।
मानको तजौ भजौ स्वभाव कोमलाई ।। १ ।।
छल बल तजि सदा विमलभाव सरलताई भजि ।
सर्व जीव चैन दैन, वैन कह सुहाई ।। २ ।।
ज्ञान तीर्थ स्नान दान, ध्यान भान हृदय आन ।
दया-चरन धारि करन-विषय सब बिहाई || ३ |
आलस हरि द्वादश तप, धारि शुद्ध मानस करि ।
खेहगेह देह जानि, तजौ नेहताई ।। ४ ।।
अंतरंग बाह्य संग, त्यागि आत्मरंग पागि ।
शीलमाल अति विशाल, पहिर शोभनाई ।। ५ ।।
यह वृष- सोपान - राज, मोक्षधाम चढ़न काज ।
शिवसुख निजगुनसमाज,केवली बताई ||६ ॥

रचयिता: कविवर श्री भागचंद जी जैन

Source: आध्यात्मिक भजन संग्रह (प्रकाशक: PTST, जयपुर )